" अधूरा मन "
सितम्बर महीने का आखिरी समय चल रहा था, लौटते हुये मानसून की आखिरी बरसात हो रही थी, आसमान में छाये बादल और उनसे बरस रही बूंदें रह -रह के तेज और धीमी हो रही थीं, साथ में हवा के झोंकें पूरे मौसम को सुहावना बनाये हुये थे। समीर ने अपने लैपटाप को खोला और उसकी उंगलियां की बोर्ड पर चलने लगीं जिसके साथ ही नोटबुक पर कुछ छपने लगा था। स्पाटीफाई पर तलत अजीज और लता मंगेशकर की आवाज में एक गजल ....फिर छीड़ी रात बात फूलों की ़़़़़़़़़़़़़़़़़़........ अपनी मधूर स्वर लहरियां बिखेर रहीं थी। सर्द हवा जब भी समीर के बदन से टकराती उसे बहुत अच्छा लगता। थोड़ी देर आफिस का काम निपटाने के बाद उसने अपनी मोबाइल खोल ली, जैसे ही उसने अपना व्हाट्सएप खोला, चारू के कई मैसेज पड़े हुये थे। “तुम्हे मेरा हाल पूछना हो तो खुद ही पूछ सकते हो किसी दूसरे से पूछने की कोई जरूरत नही हैं“। चारू के इस मैसेज को पढ़ के समीर के चेहरे पर मुस्कुराहट आ चुकी थी वो समझ चुका था कि चारू का गुस्सा ना...