रविवार, 5 मई 2024

देवी

ऐसा क्यों होता है तिवारी सर, कि आदमी जिसके लिये पूरी दुनिया छोड़ देता हैे वही उसको छोड़ देता है। क्या प्रेम में किसी से वफा की उम्मीद नही की जा सकती है ? साथ ही नौकरी करने वाले आकाश ने तिवारी सर से सीधे पूछ लिया तिवारी जी ने हंसते हुये कहा यार, आकाश प्रेम उन्ही को होता है जो बेवकूफ बनने के लिये तैयार रहते हैं। 


आकाश सवालों की बौछार लगाये हुये था तिवारी सर, क्या कोई हम लोगों के दिल को समझेगा ? ऐसा क्यों होता है तिवारी सर कि सब जाकर अपनी दुनिया में मस्त हो जाते हैं, और आपको ऐसे इग्नोर किया जाता है जैसे आप उनके लियेे लिये कभी कुछ थे ही नही। ऐसा क्यों होता है, सर बस मुझको इतनी बात समझा दीजिये। टूटन के दर्द से जूझते आकाश के सवालों पर तिवारी सर ने कहा यार, आकाश इन्ही सवालों का जवाब तो मैं भी ढूंढ रहा हूं। आकाश ने कहा सर जानते हैं जिस दिन उनकी शादी होती है वो उस दिन पलट कर आपको देखती तक नही है, जैसे लगता है कि आप ही उनके सबसे बड़े दुश्मन हैं, आखिर ऐसा क्यों तिवारी सर ? तिवारी सर आकाश के सवालों का कुछ जवाब देते उसके पहले ही आकाश बोल पड़ा सारे रिश्ते नाते तोड़कर ऐसे इग्नोर किया जाता है जैसे आप उसके लिये कुछ हैं ही नहीं, आपके सारे अधिकार आज से खत्म ऐसा क्यों होता है तिवारी सर? तिवारी सर ने अपना माथा पकड़ लिया उन्होने बात को घुमाने की गरज से कहा यार, आकाश तुम मेरी कहानियां नहीं पढ़ते क्या ? पढ़ लिया करो, हो सके कि तुम्हारे सारे सवालों का जवाब उनमंे मिल जाया करें। आकाश ने कहा सर; क्या कहानियां पढ़ूं जिंदगी तो खुद कहानी हो गयी है, सारे अनुभव प्रत्यक्ष हो रहे हैं। आकाश ने फिर कहा सर, शादी विवाह होने के बाद कोई ऐसे क्यूं बदल जाता है, ससुराल से आने के बाद वो अजनबियांे की तरह क्यों मिलता है, उसके आने की खबर सुनकर भागते हुये जाओ तो वो सबके बीच महफिल मंे मिलता है जबकि वही शख्स शादी से पहले कितना ही बड़ा जलसा क्यों न हो, घर में मेंहमानों की भीड़ खचाखच भरी हो, मिलने का कोई न कोई रास्ता निकालकर मिल ही लेता था। ऐसा क्यों होता है ? तिवारी सर, तिवारी सर कुछ कहते आकाश ने फिर कहा सर जानते हैं शादी के बाद वो मुझसे ऐसे मिली कि मैं बस दूर से ही उसे देख सका, मतलब इतनी दूर से कि उसकी उंगली तक नही छू सकता और एक जमाना था कि “मुझे कभी छोड़ेंगें तो नही न आप, और कैसे जियूंगी आपके बगैर कहते हुये कलेजे से मोम की तरह ऐसे चिपक जाती थी कि बदन से अलग हो तो उतनी दूर की चमड़ी उघड़ जाये। ऐसा क्यों होता है तिवारी सर। जानते हैं तिवारी सर, जब से वो आई है तब से मैं उससे दो बार मिलने के लिये गया, वैसे ही जैसे प्रेम में विह्वहल होकर आदमी अर्ध मुर्छा की स्थिति में इधर-उधर भटकता है। उसे न तो अपनी स्थिति और न ही मान मर्यादा का ध्यान रहता है कुछ वैसी ही स्थिति मेरी थी तिवारी सर, मतलब एक कुत्ते से भी बदतर स्थिति मेरी थी, सर मैं भाग के उसके पास गया, लेकिन हाय रे ! उसके हृदय की निष्ठुरता उसने मुझे ऐसी निगाहों से देखा जैसे मै न जाने कहां से आया कौन सा अजनबी हूं, उसके न तो आंखों में चमक थी न तो उसके ओठों पर मुस्कुराहट आई और न तो उसके ओठ कांपे कि वो मुझसे कुछ बोले। तिवारी सर एक बात जानते हैं आप पंडित बाबाओं ने जो शादी विवाह के मंतर बनायें हैं बहुत अत्याचार किये हैं हम लोगों पर, तिवारी बाबा, ई मंतरवा अइसे हैं केवल स्त्रियांे पर ही असर करते हैं, और बहुत तगड़ें में असर करते हैं। सर इन मंत्रों का ही असर है कि उसने मुझे पागल बनाकर छोड़ दिया। एक बात और तिवारी बाबा मेरा अनुभव है कि ये मंत्र पुरूषों पर असर नही करते। तिवारी सर आकाश के प्रश्नों पर अब विचलित होते जा रहे थे तिवारी सर ने कहा कि यार, आकाश ऐसा क्यों होता है स्त्री ऐसा व्यवहार क्यों करती है इसका जवाब देने में तो देवता असमर्थ रहे हैं “त्रिया चरित्रम् देवो न जानपि कुतो मनुष्य; “ फिर हम आदमियों की क्या विसात एक स्त्री के व्यवहार और चरित्र को समझ सकें। आकाश ने कहा सर, जानते हैं अपनी बीबी के सामने आदमी कैसे शेर की तरह रहता है लेकिन प्रेमिका के सामने तो उसकी औकात कुत्ते से भी बदतर हो जाती है, ऐसा क्यों होता है तिवारी सर। अब तो तिवारी सर अपने सर के बाल नोच रहे थे, उन्होने कहा आकाश इतना मत सोचो नही तो डिप्रेशन में चले जाओगे। सर, आप डिप्रेशन में जाने की बात कर रहे हैं इधर तो जिंदगी ही दाव पर लगी है। आकाश ने कहा सर जानते हैं, पत्नी जरा सा भी बात न माने या पति के मन वाली न करे तो पति उसे ऐसे झिड़कता है जैसे उसका कोई वजूद न हो और उस बेचारी का पूरा दिन पति देव को मनाते हुये गुजर जाता है। सबसे पहली नाराजगी तो भोजन पर हो जाती है पति देव खाना खाना छोड़ देते हैं, पत्नी मनाते-मनाते थक जाती है, लेकिन क्या मजाल देवता के शान में कोई कमी आये जब तक पत्नी के आंखों से आसूंओं की जलधारा न फूटे पति देव के कलेजे में ठंडक नही पहुंचतीे। दूसरी ओर रूठी प्रेमिका को मनाने के लिये आदमी सब कुछ छोड़ने से जरा भी गुरेज नही करता देश, दुनिया, मान मर्यादा, बीबी, बच्चे, धन दौलत सब यह जानते हुये भी कि वह जिसे दिलो जान से चाह रहा एक दिन उसे ढेरों दुख दर्द देकर चली जायेगी किसी की पत्नी बनने, ऐसा क्यों होता है तिवारी सर, आदमी इतना बेवकूफ कैसे हो सकता है, उसके पीछे कोई और दौड़ रहा है और वह किसी और को पाने के लिये दौड़ लगा रहा है। आखिर स्त्री को पत्नी बनने की आतुरता क्यों होती है, वह जिसकी पत्नी बनने जा रही है उसके पीछे वह अस्तित्वविहीन बनकर घूमेगी, जिसके घर की झाड़ू बरतन, से लेकर टायलेट तक साफ करने से गुरेज नही करती वह जिसको अपना देवता मानकर अपना सर्वस्व अर्पित करने को लालायित रहती है वह पुरूष कितना नैतिक होगा इस बात पर एक स्त्री क्यों नही विचार करती है, आखिर वो क्यों इसी नियम को सत्य माने हुये है कि ”भला है बुरा जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है”। जिस पति के लिये वो अपने प्रेमी को छोड़ रही हैं क्या वो किसी स्त्री के प्रेम में नही पड़ा होगा लेकिन उस जूठे पति के लिये गजब की नैतिकता दिखाती हैं स्त्रियां ऐसा क्यों होता है तिवारी सर ? अब तो तिवारी सर को लगने लगा कि आकाश की दिमागी हालत ठीक नही है, उन्होने आकाश को समझाते हुये कहा आकाश भाई ये कहां प्यार व्यार के चक्कर में पड़ गये हैं, अब आप घर जाइये, दवा खाकर आराम से सो जाइये। आकाश ने कहा तिवारी सर मेरे पास तो कोई सहारा नही रह गया, वह चली गई लेकिन मैं उसकी दी हुई कसम को आज भी पालन कर रहा हूं। आकाश ने कहा जानते हैं तिवारी सर मैं जब सरकारी नौकरी पाया तो मन में यह सपना था कि इससे बड़ी नौकरी में जाऊंगा, कापी किताब लेकर तैयारी में जुटा ही था कि मेरी लाइफ में मेरे प्यार की इंट्री हो गई, उसका जीवन बनाते-बनाते खुद का जीवन कब बिगड़ गया पता ही नही चला। पूरा जीवन उसका जीवन संवारने में होम हो गया, मेरी कितनी इज्जत थी तिवारी सर, क्या फ्रेंड सर्किल थी जो चाहता था समाज में सब होता था, लेकिन सब कुछ न जाने कहां गायब हो गया। कब सारी प्राथमिकतायें गौण हो गयी समझ नही सका। उसकी एक कॉल आ जाय तो आदमी एक खुजली वाले कुत्ते की तरह एकांत ढूढने लगता था, जैसे खुजली वाला कुत्ता अंधेरी जगह और एकांत ढूंढता है ठीक वही हालत होती है। अब तिवारी सर बेचैन हो चुके थे क्या आकाश की बातें पूरी तरह निरर्थक थीं ? या वह यथार्थ से सनी पगी बातें कह रहा था। तिवारी जी ने कहा आकाश परेशान न हो धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा, “वक्त हर जख्म को भर देता है”। आकाश नेे कहा तिवारी सर, हम उनकी याद में मर रहे हैं और उनका सब कुछ अच्छा चल रहा है, जिस दिन से उनकी शादी तय होती है न तिवारी सर ये उसी दिन से वे बदल जाती हैं लेकिन एहसास नही होने देती तिवारी सर, वो अंतिम क्षण तक आपका उपयोग करती हैं फिर एक दिन ढेर सारी दिलासायें देकर ठगा सा छोड़कर रवाना हो जाती हैं। तिवारी जी केवल “हामी” भरकर रह गये वो आकाश को एकटक निहार रहे थे आकाश ने कहा तिवारी सर घर की बीबी के कमरे को छोड़कर मैं बाहर कुटिया में सोता हूं, वो कहती है आज आप दूध नही पियेंगे क्या, दूध पी लिजिये और फिर जहां सोने जाना हो, जाकर सो जाईयेगा, कितना समर्पण है उनका, उनको सब एहसास है लेकिन वो एक जबान नही बोलती वो स्त्री ही क्या जो मर्द की नजर और उसकी हालत न जान ले। तिवारी सर, हम लोग की बीबीयां देवी हैं, देवी लेकिन हम लोग उनकी कद्र नही करते। तिवारी सर ने जैसे ही आकाश के मुंह से देवी वाली बात सुनी उनकी आंखें चमक उंठी उन्होने कहा आकाश यही बात है जो तुम समझ नही पा रहे हो यह युगों -युगों से चला आ रहा है आदमी की एक ही चाहत है कि वो किसी तरह देवता बन जाये और स्त्रियों की चाहत है कि वो देवियां बन जायें। लाल सिंदूर, लाल चूड़ी, लाल बिंदी, लाल साड़ी, गले में मंगलसूत्र और चुनरी ओढ़कर सजी धजी किसी स्त्री का यह पहनावा बस इसलिये है कि वो देवी जैसी दिखें, दिखती भी हैं। देवी बनने की लालसा में प्रेमी को तो क्या वो तीनो तिरलोक में किसी को भी छोड़ सकती हैं। तिवारी जी ने आगे कहा चाहे उन्हे पति के घर की टायलेट साफ करनी हो या झाड़ू, बरतन, पोछा, सब करेंगी लेकिन उनसे उनका देवी का होने का दर्जा मत छीनो। जानते हो आकाश देवियां दूर से दर्शन करने के लिये होती हैं छूने के लिये नही होती, तुम अपने प्यार को देवी मानो और एक पुजारी की तरह से उसे पूजो उसकी मर्जी तुम्हारे पास आये या न आये। तिवारी सर ने कहा आकाश ये बात गांठ बांध लो प्रेम स्वतंत्रता देता है, गुलाम नही बनाता बशर्ते वो प्रेम हो, तुम तो प्र्रेम कर रहे प्रत्युत्तर में अगर प्रेम की आशा कर रहे तो ये प्रेम नही व्यापार है। यह आशा ही व्यर्थ है और तुम्हारे दुखों का कारण  है। 

जानते हो आकाश......

कुछ देकर कुछ पाने की अभिलाषा है व्यापार

सर्वस्व लुटा दे मानव जिसमें कहते उसको प्यार

अगर तुमको यह दर्शन की बातें नही समझ में आ रही तो तुम विज्ञान के हिसाब से ही समझ लो और वैसे भी आकाश तुम तो विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी हो और मैं भी थोड़ा बहुत विज्ञान पढ़ा ही हूं, कक्षा 10 में अब पढ़ाया जाता है विद्युत रासायनिक श्रेणी, जैसे कोई रासायनिक अभिक्रिया में कोई तत्व जिंक से क्रिया कर रहे वहीं अगर उससे ताकतवर चांदी आ गया तो वो जिंक को छोड़ चांदी से क्रिया कर लेता, अगर सोना आ जाय तो अब वह चांदी को छोड़ सोने से क्रिया कर लेता है, यही हाल है स्त्रियों का है तुमसे अच्छा कोई उसे मिल गया उसने तुमको छोड़ ं दिया। तुम उस विद्युत रासायनिक श्रेणी के निचले पद के धातु हो और यह दोष तुम्हारा नही है और यह बात तुम खुद पर भी लागू कर सकते हो तुम जिसे आज प्रेम कर रहे हो जिसके लिये पागल हुये हो उससे सुंदर कोई स्त्री तुम्हारे जीवन मे अभी आ जाय तो क्या तुम उसको स्वीकारोगे नही। तिवारी सर ने मुस्कुराते हुये कहा एक शेर सुनो आकाश

या खुदा गजब तेरी खुदाई है 

नया दर्द ही पुराने की दवाई है ।

तुम उसे फिर स्वीकारोगो और यही क्रम चलता रहेगा। यह क्रम आजीवन तब तक चलेगा जब तक शरीर तुम्हारा अशक्त न हो जाय, की सारी लालसायें समाप्त न हो जायं। आकाश अब शांत हो चला था वह मन ही मन बुदबुदाते हुये कि देवियां मात्र पूजने के लिये हैं पाने के लिये नही अपने घर के लिये चल दिया तिवारी बाबा ने एक गहरी और राहत भरी सांस ली। 

(प्रदीप तिवारी) 

 

मंगलवार, 27 जून 2023

जामुन के वे बेर

 मई और जून की बेतहाशा तपिश के बाद मानसून के आगमन का ज्योंही संकेत मिलता है, जामून के हरे-हरे फल सांवलें होने लगते हैं और कुछ दिनों में शालीग्राम की तरह हो जाते हैं वही शालीग्राम जो लगभग हर हिंदू घर में पूजे जाते हैं, अगर घर में पूजे न भी जाते हों  तो कथा वार्ता में शालीग्राम जी के दर्शन पंडित जी करा ही देते हैं, कोई उन्हे प्यार से ठाकुर जी कहता है तो कोई कान्हा जी।

एक रोज मनीष की पढ़ाई की मेज पर किसी ने स्नेह भरे जामुनों का एक डलिया लाकर रख दिया, जामुनों का जो स्वाद था सो था ही लेकिन देने वाले के अपनत्व ने मनीष का दिल जीत लिया। जब तक वह पढ़ता रहा जामुनों का स्वाद लेता रहा। जामुन देने वाले को यह देखकर शायद खुशी हुई कि उसकी लाई हुई चीज मनीष को पसंद आई। जामुुन मनीष को पसंद है यह समझ अगले दिन जामुन लाने वाला उसी डलिया में पिछले दिन से ज्यादा जामुन लेकर आया। मनीष ने आज बहुत नोटिस तो नही किया लेकिन उसने जामुनों को बड़े ही जतन से रखवा दिया कि जब उसे फुरसत में आराम से खायेगा। दोपहर बीता जब मनीष अपनी दैनिक दिनचर्या से खाली हुआ तो उसे जामुनों का ख्याल आया। उसने जामुनों के तीन हिस्से किये एक हिस्सा अपने लिये, एक हिस्सा अपने घर के बाकी सदस्यों के लिये, और एक हिस्सा उस खास मित्र के लिये रखा जिसे वो बहुत मानता था। मनीष से आज उसकी मुलाकात बहुत दिनों के बाद होनी थी। मनीष ने सोचा कि प्यार से सने इन जामुनों को वह अपने दोस्त को जरूर खिलायेगा जिसे वो सबकी तुलना में अधिक चाहता है। मनीष अब इंतजार करने लगा, उसका दोस्त बाहर से अपने घर आ चुका था, वह मनीष से कुछ जरूरी बातें कर भी रहा था लेकिन वह मनीष को अपने घर आने के लिये कह नही रहा था हालांकि ऐसा अमूमन होता नही था, जब भी उसका दोस्त अपने घर आता घर आने के घंटे भर मे मनीष उसके पास होता था। दोपहर बीत चूका था सांझ हो आई थी मनीष बेचैन था वो अपने दोस्त के संदेशे का इंतजार कर रहा था कब उसका बुलावा आये और मनीष उसके घर पहुंचे उसे जामुन भंेट करके अपने प्रेम का प्रदर्शन कर सके। मनीष ने जामुनों को एक पालीथीन की थैली में बांध रखा था, बंधा होने से उसमें महक आने लगी थी। मनीष ने पालीथीन की थैली की गांठ को ऐसे खोला जैसे वह अपने दोस्त को अपनी दोस्ती के बंधन से आजाद कर रहा हो। कभी किसी के लिये बहुत कुछ करने की तमन्ना होती है लेकिन आदमी कर नही पाता है। समय के साथ लोगों की प्राथमिकतायें बदल तो जाती हैं लेकिन क्या इतनी भी बदल जानी चाहिये कि अजीज दोस्त से औपचारिकतायें भुला दी जायें इन्ही ख्यालों में डूबे हुये मनीष को पिछली सारी बातें याद आने लगी कि कैसे उसकी दोस्ती प्रगाढ़ हुई और उसने अपने दोस्त का जीवन संवारने के लिये क्या-क्या न किया। खैर सांझ का अंतिम पहर था, उसके दोस्त की कॉल आ गई, आओगे नही क्या ? मनीष ने कहा यार, तुम्हारी प्राथमिकता में मैं कब शामिल होऊंगा ? मैने तुम्हे बताया था कि शाम को मेरा निमंत्रण है, मुझे कहीं जाना है, तब तो तुमने कहा अरे शाम, को न जाना है, शायद भूल गये होगे, अब मुझे जाना है तो तुम अपने यहां बुला रहे हो।


 झिड़कते हुये मनीष ने मोबाइल रख तो दिया लेकिन उसने जामुनों की फिर पोटली बांधी और पहुंच गया अपने मित्र के पास। उसको देखा तो उसका मित्र अपने कागजों में उलझा हुआ था, उसने तो उसे जी भर के देखा भी नही। उसने जामूनों की पोटली अपने मित्र को यह कहते हुये थमाई कि ये जामुन तुम्हारे लिये लाया हूं, उसके दोस्त ने बड़ी बेरूखी से कहा कि रख दो यार, खा लूंगा, मनीष अपने अंदर कूछ टूटता हुआ महसूस कर रहा था, कहाँ मनीष सोच रहा था कि उसका दोस्त जामुनों को झठ से हाथों में ले लेगा और खुश होते हुये कहेगा यार, तुम मेरा कितना ख्याल रखते हो। कहां से लाये हो, किसने दिया है ? ओह कितने अच्छे हैं लेकिन सारे प्रश्न दोस्त में आये हुये बदलाव में कहीं खो चुके थे। मनीष थोड़ी देर रूका जरूरी सलाह मशविरा किया और उसके घर से निकल लिया, पांव थोड़े भारी थे, मन मंे उसके विचारों के बादल उमड़-घूमड़ रहे थे कि प्रेम में पगे ये जामुन उसको किसी ने बड़े ही प्रेम से दिये थे, और वो इन जामुनों को ऐसे व्यक्ति को दे रहा था जिसने प्रेम को समझा ही नही शायद ! या उसे जामूनों की जरूरत नही होगी और अति प्रेम में पड़कर मनीष उसे जबरदस्ती दे रहा होगा तभी तो उसका दोस्त उस पर ध्यान नही दिया, अगर उसके दोस्त को जरूरत होती तो जरूर वह नोटिस करता। मनीष यह भी सोच रहा था कि बिना मांगें किसी को कोई चीज देनी ही नही चाहिये चाहे वह जामुन हो या फिर प्रेम क्योंकि बिना मांगे दिये जाने पर उस  चीज की कद्र नही रह जाती है। मनीष मन ही मन कुछ निश्चय करता हुआ तेजी से अपने घर की ओर बढ़ चला था। 

(प्रदीप तिवारी)


मंगलवार, 20 जून 2023

“मैनेजर”

सबसे बढ़ियां तो लेडीज टीचर होती हैं उन्हे चाहिये ही क्या ? कुछ हजार रूपये साल में एक दो सूट के कपड़े बतौर ईनाम दे दो पड़ी रहेंगी, जब तक ससुराल चली नही जाती वो तब तक संस्था की सेवा करती रहती हैं। मैनेजर साहब ने अपना अनुभव शेयर करते हुए प्राईवेट स्कूलों का निचोड़ सबके सामने रख दिया। मैनेजर साहब का बड़ा बोल बाला था। जैसे तैसे पहले करकट में, फिर किराये के मकान में स्कूल डाला, गढ़ही और पोखरी को कब्जियाते हुए पचास प्रतिशत के घूस पर विधायक और सांसद निधि की बदौलत उन्होने एक विद्यालय खड़ा कर लिया। जहां तक उन्हे मान्यता मिली उन कक्षाओं तक विद्यालय तो चलाते रहे उसके आगे की कक्षाओं को अन्य मान्यता प्राप्त विद्यालयों से अटैच करके कक्षाओं को पास कराने की गारंटी के नाम पर चलाते रहे। इस धंधे से लाखों कमाया उन्होने, धीरे-धीरे मान्यता भी मिल गयी। इनके विद्यालय में पढ़ाने वाले अध्यापक एक हजार से पंद्रह सौ रूपये और अधिकतम 2500 रूपये प्रतिमाह पर खटते मिल जायेंगें। अध्यापकों की योग्यता से इन्हे कहां मतलब, जैसा दाम वैसा काम, इंटर पास इंटर को पढ़ा रहा है। हाईस्कूल फेल अध्यापक हाईस्कूल का मास्साहब बना है, शर्त यह है कि अध्यापक का चेहरा मोहड़ा सही होना चाहिये। ऐसे विद्यालयों में पढ़कर निकलने वाले छात्र इन्ही विद्यालयों में नौकरी करना पसंद भी करते हैं। ये विद्यालय लड़कों से ज्यादा लड़कियों को पढ़ाने पर तरजीह देते हैं। मैनेजर साहब का साल का तीन सौ दिन अध्यापक खोेजने मे ही बीतता रहता है। ऐसे में कोई बेरोजगार उनके यहां खुद को टीचर रखने का आवेदन कर दे तो उनकी बाछें खिल उठती हैं। आज शिल्पा का इंटरव्यूय था, बी.एस-सी. पास थी वो आगे मां बाप पढ़ाने में असमर्थ थे। वो भी शहर से पढ़कर आयी थी सो उसकी अपनी तमन्नायें थी। खूबसूरत चेहरा, कजरारी आंखे वाले शिल्पा के अंदर आकर्षण था । मैनेजर साहब के सामने वो उपस्थित हुई । अब मैनेजर साहब तो बीए के स्टूडेंट रहे हैं उन्हे साइंस आता जाता तो था नही लेकिन उन्होने बड़ी रौबदार आवाज में पूछा साइंस पढ़ा लेती हो ? शिल्पा ने जवाब दिया, जी सर। ओके, फिर 500 रूपया प्रति घंटा मिलेंगें चार कक्षाओं में साइंस पढ़ाना है। शिल्पा को नौकरी मिली गई। शिल्पा अब शिल्पा मैम हो गई। मैनेजर साहब की कृपा दृष्टि कुछ ज्यादा ही शिल्पा के ऊपर थी। पुरानी मैडमें अक्सर नई मैम शिल्पा की गलतियों को मैनेजर तक पहुंचानें में लगी रहती थी। मैनेजर साहब उन गलतियों को अरे ठीक है, कह कर नजर अंदाज कर देते थे और कहते थे कि अभी नयी है सीख जायेगी।



एक दिन शिल्पा स्कूल बंद होते ही अपने घर के लिए निकली, अभी कुछ दूर पहुंची ही थी कि मैनेजर साहब की चमचमाती कार पीछे से आ गयी। मैनेजर साहब ने कार रोक दी और विंडो के डोर को नीचे करते हुए शिल्पा से बोले बैठ जाओ छोड़ दूंगा। शिल्पा ने कहा ’नही सर’ मैं पैदल ही चली जाऊंगी। अरे आओ जी, उधर ही मुझे भी जाना है। शिल्पा सकुचाते हुये ही सही कार का दरवाजा खोलकर बैठ गयी। बाहर की चिलचिलाती धूप के आगे कार के अंदर की एसी उसे आनंदित कर गयी। मैनेजर साहब की कार के अंदर गाना बज रहा था “तुम अगर साथ देने के वादा करो मैं यूं ही मस्त नगमें सुनाता रहूं“, स्कूल कैसा चल रहा है ?  मैनेजर साहब ने पूछा,  ठीक है सर, बस बच्चे कमजोर हैं पढ़ने में। मैनेजर साहब ने कहा हां यह तो सही कह रही हो क्या करें अभिभावक ध्यान देते नही है। अब स्कूल वाले कितनी मेंहनत करें तुम्ही बताओ। मैनेजर ने शिल्पा को समझाते हुए कहा कि जरा तुम अपने हिसाब से विद्यालय को देखो थोड़ा ठीक ठाक कर दो। मैनेजर के बात करने की वजह से शिल्पा भी सहज हो चुकी थी। तभी शिल्पा के घर की ओर जाने का रास्ता आ गया। मैनेजर ने कार रोक दी। शिल्पा चौक पर उतर गई और वहां से कुछ दूरी पर स्थित अपने घर की ओर पैदल चली गयी। आज उसके चेहरे पर कुछ ज्यादा मुस्कुराहट थी। अगले दिन शिल्पा का विद्यालयी कार्य में मनोयोग बढ़ गया था। शिल्पा पूरे समर्पित भाव से विद्यालय को बेेहतर बनाने में लग चुकी थी। समय-समय पर मैनेजर के मीठे बोल और सराहना शिल्पा का जहां हौसला बढ़ा देते थे वहीं उसके साथ की मैडमें जल भुन जाती थी। पुरूष अध्यापकों के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान तैर जाती थी । समय बीत रहा था, अब शिल्पा चार घंटी पढ़ाने के बाद आफिस के काम में हाथ बटाती थी। महीने की अंतिम तारीख थी आज स्कूल में हाफ डे होता है। दिन के 12 बजे बच्चों की छुट्टी हो गयी। सभी अध्यापक एक -एक करके चले  गये। शिल्पा महीेने भर का हिसाब बना रही थी। 15 सौ रूपये का हिसाब मिल नही रहा था। शिल्पा पूरा लेखा जोखा चार बार जोड़ चुकी थी। माथे पर आ चुके पसीने को दुपट्टे से पोछते हुए शिल्पा ने अपना सिर उपर उठाया तो देखा की मैनेजर उसे निहार रहा था। दोनो की आंखें टकराई तो मैनेजर अचकचाया और पूछा क्या बात है, बहुत देर से परेशान हो ? शिल्पा ने कहा कि सर 1500 रूपये हिसाब में  कम पड़ रहे हैं। मैनेजर मौन साध गया। इसके पूर्व शिल्पा की जगह जो काम देखती उस लड़की के हिसाब मंे गड़बड़ी हुई तो उसकी वेतन से मैनेजर ने पैसा काट लिया था। शिल्पा को इस बात का गम नही थी कि उसके वेतन से पैसे कट जायेंगे वो यह सोच -सोच कर परेशान थी उसकी रेपूटेशन खराब हो जायेगी। स्टाफ के लोग उसे चोर न समझ लें। यह सब सोच कर शिल्पा एक बार फिर लेखा मिलाने लगी। स्कूल में बस दो ही लोग बचे थे मैनेजर और शिल्पा। मैनेजर उसे निहारे जा रहा था। तभी मैनेजर उठा और शिल्पा के हाथ से उसकी कलम निकालते हुये बोला छोड़ो यार, हिसाब किताब कहां उलझ गयी हो ? शिल्पा मैनेजर के हरकत का प्रतिरोध नही कर सकी। वह बोली सर लेकिन हिसाब तो हिसाब है न, मैनेजर उसकी बात काटते हुए बोला तुम इतने मेंहनत से काम करती हो मेरा दिल जीत ली हो। रूपया पैसा आयेगा जायेगा लेकिन मैं अपनी सबसे खूबसूरत और इंटेलीजेंट स्टाफ के चेहरे पर शिकन नही देख सकता। लीव दैट, मेरे नाम से लिख दो वो पंद्रह सौ रूपया। जी सर, बस इतना कह सकी शिल्पा। शिल्पा घर आ चुकी थी। पूरे वाकये ने उसे परेशान कर रखा था। यार, खूबसूरत, इंटेलीजेंट जैसे शब्द उसके दिमाग में बिजली की तरह कौंध रहे थे।  मैनेजर भी आकर्षक था लेकिन कभी शिल्पा ने उसे इस नजर से देखा नही था। मैनेजर का बेतकल्लुफ होना बढ़ता गया। शिल्पा उसके आकर्षण पाश में बंधती चली गयी। शिल्पा तीन बहने थी, शिल्पा, प्रिया और प्रज्ञा उसके पापा एक छोटी दुकान चलाते थे। खर्च बढ़ता गया तो शिल्पा ने भी कुछ करने की सोची थी। जिस तरह शिल्पा की मां फ्रेंडली नेचर की थी उसी तरह से शिल्पा भी थी। यह फेमली पिक्चर, टीवी देखकर एडवांस हुई थी। मैनेजर की मेहरबानियां शिल्पा के उपर बढ़ने लगी थी। शिल्पा भी घर से लेकर बाहर तक ”मैनेजर सर“ की ही चर्चा करती थी। सर, होली पर जरूर आईयेगा शिल्पा ने मैनेजर से आग्रह किया मैनेजर ने कहा जरूर जरूर क्यों नहीं ? होली के दिन शाम को मैनेजर शिल्पा के घर पहुंचा तो उसकी खूब आवभगत हुई। मैनेजर ने कहा कि शिल्पा तुम्हारे घर का हर आईटम बढ़िया है। मम्मी ने बनाया है सर, वो खाना भी बहुत बढ़िया बनाती हैं नानवेज तो पूछिये मत। ’अच्छा ’ कभी खिलाओ तो जाने, शिल्पा की मम्मी बोली जब कहें तब, दिन मुकाम मुकर्रर हो गया। मैनेजर बोला कि एक ही शर्त पर खाऊंगा जब आप लोगों का एक पैसा खर्च न हो यानी का सारा इंतजाम मेरा होगा। सब लोग हंसने लगे। दावत के दिन मैनेजर ने पैसा खर्च करने में कोई कोताही नही की। पूरे परिवार मैनेजर का मूरीद हो चुका था। शिल्पा की छोटी बहन प्रज्ञा को भी नानवेज पसंद था बला की खूबसूरत थी वो मैनेजर उसे भी कनखियों से देखे जा रहा था। अब तो शिल्पा के मैनेजर से घरेलू सम्बंध हो चुके थे। मैनेजर का आना जाना बढ़ गया था। हफ्ते में एक दिन दावत के लिए मुकर्रर था। पैसा खर्च होता था मैनेजर का। मैनेजर के लिए उतनी रकम दाल में नमक के बराबर थी। गाहे बगाहे मैनेजर शिल्पा व उसकी बहनों की आर्थिक मदद भी कर देता था। शिल्पा और उसके परिवार पर मैनेजर के एहसान बढ़ते जा रहे थे, शिल्पा कभी-कभी सोचती कि आखिर क्यों मैनेजर उसके उपर इतनी मेहरबानी करता है ? कनखियों से निहारता रहता है, मौका देखकर छूने की कोशिश करता है। उत्तर सोच शिल्पा मन ही मन रोमांचित होने लगी। एक दिन आफिस मंे बैठी शिल्पा काम कर रही थी मैनेजर उसे कनखियों से निहार रहा था तभी शिल्पा ने हिम्मत करके पूछ लिया क्या देख रहे हैं सर ? मैनेजर मजे मजाये खिलाड़ी की तरह बोला जब इतनी सुंदर लड़की सामने बैठी हो तो कोई और क्या देखेगा ? शिल्पा मुस्कुरा उठी मैनेजर ने कहा तुम बहुत खूबसूरत हो । मैनेजर उठा और कुर्सी पर बैठी शिल्पा के अधरों पर अपने अधर रख दिये। शिल्पा ने कहा नही, सर मुझे छोड़िये कहीं कुछ गलत न हो जाय। मैनेजर ने उसे अपने बाहों में भरते हुए बोला जिंदगी में कहीं कुछ गलत नही है। मैं हूं न, सब सही हो जायेगा। शिल्पा के ओठ रोमांच से कांप रहे थे, बदन थरथरा रहा था लेकिन मैनेजर का आकर्षण इतना जबरदस्त था कि वह उसे परे नही ढकेल सकी। मैनेजर ने कहा शिल्पा, जिंदगी का मजा लो, मेरा साथ दो तुम भी मजा लो, यह स्कूल तुम्हारा है, मेरा सबकुछ तुम्हारा है। मैनेजर न्यौछावर हुये जा रहा था। उसके हाथ तेजी से शिल्पा के बदन पर फिसल रहे थे। शिल्पा को मालकिन होने का एहसास होने लगा था उसका चेहरा गर्व से भरता जा रहा था। बिना इस बात के एहसास के कि उसी जगह मैनेजर न जाने कितनी शिल्पाओं को मालकिन बनाया था, अपना सब कुछ देने का वादा कर उनका सबकुछ छीन लिया था। विद्या के मंदिर में ही वर्जनाओं के बांध टूट गये। शिल्पा निढाल हो चुकी थी, उत्तेजना में पागल शिल्पा अपना सबकुछ सौंपने के लिए आतुर हो चुकी थी। शिल्पा और मैनेजर काफी देर तक स्कूल की आफिस के सोफे पर पड़े रहे। फिर तो सिलसिला चल पड़ा। शिल्पा स्कूल मंे बच्चों को पढ़ाती, स्कूल बंद होने के बाद मैनेजर शिल्पा को काम शास्त्र पढ़ाता। स्कूल बंद होने के बाद शिल्पा देर तक रूकने लगी। किसी न किसी बहाने स्कूल के बाहर भी शहर मुख्यालय तक दोनो जाते किसी होटल के कमरे को गुलजार करते। मैनेजर दिल खोल कर शिल्पा के उपर पैसा लूटाता। शिल्पा पूरी तरह खुल चुकी थी। स्कूल भी वह मेहनत से संभालती मैनेजर का दिल भी। मैनेजर ने उसकी तरक्की करते हुए अब विद्यालय का प्रिंसीपल बना दिया था। वक्त बीतते रहे शिल्पा का पूरा रौब स्कूल मंे चलता था। मैनेजर तो भवंरा था उसे हर वक्त कली की ही तलाश रहती थी। धीरे-धीरे वह भी समय आ गया जब शिल्पा के विवाह की चिंता उसके घर वालों की हुई। एक ठीक-ठाक परिवार में शिल्पा की शादी तय हो गई। शिल्पा की शादी में मैनेजर ने दिल खोलकर पैसा खर्च किया। शिल्पा को समझाया अगर समाज का डर नही होता तो मैं तुम्हे कभी छोड़ता नही मैं शादी कर लेता। उसने शिल्पा को लहंगा चुनरी खरीदवाया कई मनचाही खरीदारी से शिल्पा को गदगद कर दिया। शिल्पा विदा हो गई। एक दो माह बाद मौका देखकर एक दिन मैनेजर शिल्पा के घर पहुंचा शिल्पा की मां ने चाय नाश्ता दिया। मैनेजर अफसोस में सिर झुकाये बैठे रहा। परिवार वालों ने पूछा आखिर बात क्या है सर जी ? मैनेजर ने कहा कोई बात नही बस टेंशन है स्कूल की। घर वालों ने जब बहुत दबाव दिया तो मैनेजर ने जाल फेंकते हुए कहा कि शिल्पा जब से गई है विद्यालय लड़खड़ा गया है, कोई संभालने वाला नही है मेहनती स्टाफ मिल नही रहा है कुछ दिन अगर प्रज्ञा स्कूल में सेवा कर देती तो अच्छा रहता। मैनेजर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कम से कम प्रज्ञा का पाकेट खर्च तो निकल ही जायेगा सूट ड्रेस के लिए पापा से पैसे तो नही न मांगने पड़ेगें। प्रज्ञा भी घर में रहते-रहते बोर हो रही थी। उसने हामी भर दी। अब प्रज्ञा मैनेजर के स्कूल में जाने लगी, धीरे-धीरे मैनेजर उसके तारीफों के पुल बांधने लगा था। विद्यालय के स्टाफ में  फुसफुसाहट तेज होने लगी, अध्यापकों के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर चुकी थी।

( प्रदीप तिवारी  )


रविवार, 18 जून 2023

सोना

         "सोना“

"जिंदगी से कीमती सोना होता है” 

यह बात मैं पूरे होशो हवास में कह रहा हूं कि जिंदगी से कीमती सोना होता अब आप कहेंगें कि अजीब अहमक है, तो श्रीमान मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं कि जिंदगी से कीमती सोना होता है। अब आप कहेंगें कि भाई चलो कह रहे हो तो मान ही लेते हैं मगर इस बात के पीछे तुम्हारी सोच क्या है ? तर्क क्या ? सबूत क्या है ? तो नीचे दी गई एक बिल्कुल सच्ची कहानी पढ़िये आपको जरूर यकीन हो जायेगा कि जिंदगी से कीमती सोना होता है। 

एक लड़का था नाम था उसका समीर, सीधा, साधा सच्चा, परिश्रमी, ईमानदार बस एक ही अवगुण था कि वह बहुत ज्यादा इमोशनल था, उससे किसी का दुख बर्दाश्त नही होता था तो वह सबके सुख-दुख का साथी था। पढ़ाई लिखाई में वह ठीक -ठाक था सो समय से नौकरी लग गई, पैसे की कोई कमी रह नही गई। उसकी आफिस में एक लड़की से उसकी दोस्ती हो गई लड़की अभी ट्रेनी थी, जुगत लगाकर कर वह प्रशिक्षु बन तो गई थी लेकिन उसकी नौकरी तभी होगी जब वह अपने प्रशिक्षण के एक वर्ष के बाद होने वाली परीक्षा को पास करेगी। मानसी देखने में सुंदर थी, चेहरा आकर्षक, नैन नक्श तीखे पहली नजर में वो किसी को भी पसंद आ सकती थी। मानसी अपनी नौकरी को लेकर बहुत तनाव में थी, एक दिन लंच टाइम में उसके चेहरा बुझा-बुझा देख समीर ने उससे पूछा मानसी, बात क्या है तुम कई दिनों से परेशान लग रही हो चेहरे पर तुम्हारे मुस्कान नही है, बता सकती हो तो बता दो, समीर ने बड़े ही आत्मीयता से पूछा तो मानसी खुद को रोक नही सकी मानसी के आंखों के कोर भींग गये। वह बोली समीर क्या तुम मेेरे घर आ सकते हो ? समीर ने कहा क्यों नही ? उस दिन शाम को 6 बजे के आस-पास समीर मानसी के घर पहुंचा। घर में मानसी की मां ही थी पिता का देहांत हो चुका था, एक भाई था जो अभी पढ़ाई कर रहा था। चाय नाश्ते की औपचारिकता के बाद मानसी की मां किचन में व्यस्त हो गई, मानसी और समीर घर के बरामदे के बाहर छोटी सी खुली जगह में बैठकर बातें करने लगें। मानसी ने कहा कि समीर मैं तुम्हे नही बता सकती मैंने यह नौकरी पाने के लिये कितने सेक्रीफाइस किये हैं। बस मेरी नौकरी बचा लो, समीर बोला यार, मैं क्या कर सकता हूं ? मानसी ने कहा कि मैं इस जाब प्रोफाइल के बारे में कुछ भी नही जानती और मुझे लगता है कि एक वर्ष बाद होने वाले एग्जाम में मैं फेल हो जाऊंगी और मुझे जाब से बाहर होना पड़ेगा। इतना कह कर मानसी फफक पड़ी, समीर सोच में पड़ गया कि आखिर मानसी ऐसा क्यों कह रही है, उसकी नौकरी का राज क्या है ? किसकी कृपादृष्टि से नौकरी पाई है और उसे नौकरी चले जाने का इतना भय क्यों है, सेवा में आने के बाद में ऐसी परीक्षायें तो एक सामान्य सी परीक्षा होती है। समीर ने कुछ बोला तो नही लेकिन मानसी के आसुंओं ने उसे बेचैन कर दिया था। अगले दिन आफिस में मानसी समीर को आशा भरी नजरों से निहार रही थी, लंच टाइम में आज पहली बार दोनो ने अपना लंच शेयर किया था। मानसी आलू के पराठे लेकर आई थी जो कि समीर का फेवरेट डिश था। खैर दोनों में निकटता दोस्ती की हद तक बढ़ चुकी थी, समीर अब मानसी को ज्यादा समय देने लगा था । एक साल बाद होने वाली परीक्षा की तैयारी के लिये समीर जितना हो सकता था उतना मानसी की मदद कर रहा था। बुक, कापियां नोट्स के ढेर लग चुके थे। समीर इस दौरान अपने कई इंपार्टेंट कामों को छोड़ता चला जा रहा था, वह सोच रखा था कि इस साल वह अपनी यह नौकरी छोड़ ऊंचे जाब प्रोफाइल में चला जायेगा लेकिन मानसी से इमोशनल टच की वजह से अब वह दिन रात उसके ही बारे में सोचता रहता था। मानसी की मां की तरफ से कोई रोक टोक नही था सो समीर कई बार मानसी के घर से ही खाना खाकर लौटता था। समीर ने बहुत मेहनत की और मानसी को इस लायक बना दिया कि वह परीक्षा पास हो सकती थी। मानसी की परीक्षा के एक सप्ताह बचे थे, समीर का प्रमोशन के साथ तबादले का आदेश हो गया। यह खबर जैसे ही मानसी ने सुना उसे चक्कर सा आ गया। वह रोने लगी उसे लगा कि समीर उसे छोड़कर चला जायेगा। शाम को समीर जब उसके घर पहुंचा तो मानसी ने रो-रो कर अपना बुरा हाल कर रखा था, वह बेतहाशा समीर से लिपट गई। बहुत देर तक रोती रही, समीर की आंख भी भर चुकी थी, मुंह से आवाज नही निकल रही थी। समीर ने कहा यार, मानसी मैं नौकरी छोड़ना पसंद करूंगा लेकिन तुम्हे छोड़ना नही। काफी देर बाद दोनो शांत हुये, साथ जीने और मरने की कसमें खाने लगें। दोस्ती प्रगाढ़ हो चुकी थी, समीर के मन में ख्वाब पलने लगे थे। मानसी का इतना करीब आने को वह मानसी की तरफ हां ही मान चुका था। धीरे-धीरे परीक्षा की तारीख निकट आती जा रही थी, मानसी की परीक्षा के ठीक एक दिन पहले विभागीय आदेश न मानने के कारण समीर को शो काज नोटिस जारी करते हुये निलम्बित कर दिया गया। समीर बस यह सोच कर कि मानसी को पता लगेगा तो वह अपसेट हो जायेगी उसने मानसी से यह बात शेयर नही की। परीक्षा केंद्र के बाहर बैठकर समीर, मानसी के परीक्षा देकर लौटने का इंतजार करता रहा। मानसी परीक्षा देकर जब बाहर निकली तो वह काफी खुश थी। उसे खुश देखकर समीर भी खुश हो गया था। रास्ते में समीर ने उसे बताया कि वह विभाग से निलम्बित हो गया है यह सुनकर मानसी खामोश हो गयी। परीक्षा में पास हो जाने की वजह से मानसी की नौकरी स्थाई हो चुकी थी। इधर समीर मानसी को अधिक समय देने व विभागीय कार्रवाई की जद में आने से परेशान था लेकिन उसे लगता यह था कि अगर कोई दिक्कत आयेगी तो मानसी उसे संभाल ही लेगी। एक माह के निलम्बंन के बाद समीर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। नौकरी से बर्खास्त होने के बाद समीर ने विभाग पर मुकदमा कर दिया और हाईकोर्ट में पैरवी करने लगा। धीरे-धीरे आर्थिक संकट ने उसे घेर लिया। मानसी अपनी नौकरी में बिजी हो चुकी थी। मानसी के लिये एक दो रिश्तेदार मानसी के लिये अच्छे- अच्छे रिश्ते लाने लगे। मानसी की मां को भी उसके विवाह की चिंता होने लगी थी। एक दिन जब मानसी और समीर समय निकालकर आपस में बात कर रहे थे तो मानसी ने समीर की आंखों में निहार कर कहा कि क्या मैं जिंदगी भर ऐसे ही रहूंगी, मुझे बिंदी, सिंधूर, और बनने संवरने का सौभाग्य नही मिलेगा। एक लड़का मामा ने देख रखा है लड़का नायब तहसीलदार है, सुंदर है, मैं भी उससे शादी करना चाहती हूं, सबकी इज्जत के लिये क्या तुम मेरी मदद नही करोगे ? इतना कहते हुये याचना भरी नजरों से समीर को देखते हुये मानसी रूआंसी हो गयी। समीर की आँखें  भींग चुकी थीं , पैर कांप रहे थे। एक साल से वेतन के लिये तरस रहा समीर के अंदर इतना हौसला नही था कि वह मानसी से चिल्लाकर पूछ सके कि ऐसा क्यों कह रही हो, आखिर उसमें क्या कमी है? मानसी, मैने तुम्हारा मुसीबत में साथ दिया है और मेरी नौकरी जाने के पीछे की वजह भी तुम हो लेकिन वह कह नही सका। मानसी के शब्द उसके कलेजे को भेद गये थे। वह क्षत-विक्षत हो चुका था। जैसे टूटा हुआ शीशा टूटने के बावजूद तुरंत बिखरता नही जब तक कोई उसे छू न दे वही हालत समीर की थी। वह हिम्मत संजो कर बोला “ठीक तो है” जब तुम यही चाहती हो तो तुम्हारी शादी नायब तहसीलदार से ही होगी। समीर ने कलेजे पर पत्थर रख लिया। गरीबी हालत में जितना हो सकता था उसने मानसी की शादी के लिये किया, उसने मानसी से पूछा आखिर मैं तुम्हारी शादी में क्या गिफ्ट दूं जो भी चाहे मांग लो, मैं दे दूंगा। मानसी ने कहा मुझे कुछ नही चाहिये, फिर भी समीर ने उसके लिये एक लहंगा, साड़ी और जो कुछ भी कर सकता था बिना किसी से पूछे अपना पैसा खर्च करके करता रहा। मानसी की शादी हो गयी। मानसी अपने पति के साथ खुशी से रहने लगी। इधर टूटे हुये समीर को जिंदगी बोझ लगने लगी थी। शादी के महीनों बाद वह अपने मां से जब मिलने आई तो शाम को समीर भी पहुंचा। बातें होने लगी, मानसी को अपनी शादी की तारीफ सुनने की लालसा थी। उसकी खुशी देख सब लोग उसकी हां में हां भी मिला रहे थे। फिर बात होंने लगी कि शादी में किसने क्या गिफ्ट दिया, मानसी को ससुराल से क्या मिला । मानसी अपने ससुराल से मिले गहनों को खूब बढ़ा चढ़ा कर बता रही थी। फिर मायके वालों की बारी आयी कि किसने क्या गिफ्ट दिया। तभी अचानक मानसी ने समीर से कहा कि समीर तुमने तो कोई सोने की चीज गिफ्ट में दी ही नही, समीर ने अपने हाथ में पहनी अंगूठी को निकाल मानसी की तरफ उछाल दिया, और कहा कि ले लो इसे। समीर की आंख भरी हुई थी उसने कहा मानसी तुम्हे सोना चाहिये था मैने तो तुमको तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी खुशी अपनी जिंदगी कुर्बान करके दे दी थी मेरे पास बचा ही क्या था जो तुमको देता। मेरी जिंदगी की कीमत सोने की कीमत के आगे फीकी पड़ गयी होगी, कहते हुये समीर मानसी घर से बाहर निकल गया था।


अब आप बताईये........


 जिस मानसी की वजह से समीर की पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई, वह अकेलेपन का शिकार होकर डिप्रेशन में चला गया, उसकी नौकरी छूट गयी, वह समीर जिसने मानसी का जीवन बनाने के लिये अपनी खुशियों का होम कर दिया। वह समीर जो मानसी की आंखों में आंसू नही देख सकता था, वह समीर जो मानसी के लिये पूरी दुनिया से लड़ने को तैयार था। उस समीर की पूरी कुर्बानी एक सोने के आर्नामेंट के आगे फीकी पड़ गयी थी।  


तो ”जिंदगी से कीमती सोना हुआ कि नही”


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सोमवार, 5 जून 2023

पण्डितराज और लवंगी की प्रेमकथा


इतिहास प्रसिद्ध बनारस की सत्य घटना

*जब 52 सीढी उपर चढकर मां गंगा ने "पण्डितराज को अपनी गोद में लिया*🌹

सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध था, दूर दक्षिण में गोदावरी तट के एक छोटे राज्य की राज्यसभा में एक विद्वान ब्राह्मण सम्मान पाता था, नाम था जगन्नाथ शास्त्री।

साहित्य के प्रकांड विद्वान, दर्शन के अद्भुत ज्ञाता। इस छोटे से राज्य के महाराज चन्द्रदेव के लिए जगन्नाथ शास्त्री सबसे बड़े गर्व थे। कारण यह, कि जगन्नाथ शास्त्री कभी किसी से शास्त्रार्थ में पराजित नहीं होते थे। दूर-दूर के विद्वान आये और पराजित हो कर जगन्नाथ शास्त्री की विद्वता का ध्वज लिए चले गए।

पण्डित जगन्नाथ शास्त्री की चर्चा धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में होने लगी थी। उस समय दिल्ली पर मुगल शासक शाहजहाँ का शासन था। शाहजहाँ मुगल था, सो भारत की प्रत्येक सुन्दर वस्तु पर अपना अधिकार समझना उसे जन्म से सिखाया गया था। पण्डित जगन्नाथ की चर्चा जब शाहजहाँ के कानों तक पहुँची तो जैसे उसके घमण्ड को चोट लगी। "मुगलों के युग में एक तुच्छ ब्राह्मण अपराजेय हो, यह कैसे सम्भव है ?" शाह ने अपने दरबार के सबसे बड़े मौलवियों को बुलवाया और जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को शास्त्रार्थ में पराजित करने के आदेश के साथ महाराज चन्द्रदेव के राज्य में भेजा। " जगन्नाथ को पराजित कर उसकी शिखा काट कर मेरे कदमों में डालो...." शाहजहाँ का यह आदेश उन चालीस मौलवियों के कानों में स्थायी रूप से बस गया था।

सप्ताह भर पश्चात मौलवियों का दल महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में पण्डित जगन्नाथ को शास्त्रार्थ की चुनौती दे रहा था। गोदावरी तट का ब्राह्मण और अरबी मौलवियों के साथ शास्त्रार्थ, पण्डित जगन्नाथ नें मुस्कुरा कर सहमति दे दी। मौलवी दल ने अब अपनी शर्त रखी, "पराजित होने पर शिखा देनी होगी..."। पण्डित की मुस्कराहट और बढ़ गयी, "स्वीकार है, पर अब मेरी भी शर्त है। आप सब पराजित हुए तो मैं आपकी दाढ़ी उतरवा लूंगा।" 

मुगल दरबार में "जहाँ पेड़ न खूंट वहाँ रेड़ परधान" की भांति विद्वान कहलाने वाले मौलवी विजय निश्चित समझ रहे थे, सो उन्हें इस शर्त पर कोई आपत्ति नहीं हुई।

शास्त्रार्थ क्या था; खेल था। अरबों के पास इतनी आध्यात्मिक पूँजी कहाँ जो वे भारत के समक्ष खड़े भी हो सकें। पण्डित जगन्नाथ विजयी हुए, मौलवी दल अपनी दाढ़ी दे कर दिल्ली वापस चला गया...

दो माह बाद महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में दिल्ली दरबार का प्रतिनिधिमंडल याचक बन कर खड़ा था, "महाराज से निवेदन है कि हम उनकी राज्य सभा के सबसे अनमोल रत्न पण्डित जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को दिल्ली की राजसभा में सम्मानित करना चाहते हैं, यदि वे दिल्ली पर यह कृपा करते हैं तो हम सदैव आभारी रहेंगे"।

मुगल सल्तनत ने प्रथम बार किसी से याचना की थी। महाराज चन्द्रदेव अस्वीकार न कर सके। पण्डित जगन्नाथ शास्त्री दिल्ली के हुए, शाहजहाँ नें उन्हें नया नाम दिया "पण्डितराज"।

दिल्ली में शाहजहाँ उनकी अद्भुत काव्यकला का दीवाना था, तो युवराज दारा शिकोह उनके दर्शन ज्ञान का भक्त। दारा शिकोह के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पण्डितराज का ही रहा, और यही कारण था कि मुगल वंश का होने के बाद भी दारा मनुष्य बन गया।

मुगल दरबार में अब पण्डितराज के अलंकृत संस्कृत छंद गूंजने लगे थे। उनकी काव्यशक्ति विरोधियों के मुंह से भी वाह-वाह की ध्वनि निकलवा लेती।

यूँ ही एक दिन पण्डितराज के एक छंद से प्रभावित हो कर शाहजहाँ ने कहा- अहा! आज तो कुछ मांग ही लीजिये पंडितजी, आज आपको कुछ भी दे सकता हूँ।

पण्डितराज ने आँख उठा कर देखा, दरबार के कोने में एक हाथ माथे पर और दूसरा हाथ कमर पर रखे खड़ी एक अद्भुत सुंदरी पण्डितराज को एकटक निहार रही थी। अद्भुत सौंदर्य, जैसे कालिदास की समस्त उपमाएं स्त्री रूप में खड़ी हो गयी हों। पण्डितराज ने एक क्षण को उस रूपसी की आँखों मे देखा, मस्तक पर त्रिपुंड लगाए शिव की तरह विशाल काया वाला पण्डितराज उसकी आँख की पुतलियों में झलक रहा था। पण्डित ने मौन के स्वरों से ही पूछा- चलोगी ?

लवंगी की पुतलियों ने उत्तर दिया- अविश्वास न करो पण्डित ! प्रेम किया है....

पण्डितराज जानते थे यह अन्य के गर्भ से जन्मी शाहजहाँ की पुत्री 'लवंगी' थी। एक क्षण को पण्डित ने कुछ सोचा, फिर ठसक के साथ मुस्कुरा कर कहा-

न याचे गजालीम् न वा वजीराजम् न वित्तेषु चित्तम् मदीयम् कदाचित।

इयं सुस्तनी मस्तकन्यस्तकुम्भा, लवंगी कुरंगी दृगंगी करोतु।।

शाहजहाँ मुस्कुरा उठा ! कहा- लवंगी तुम्हारी हुई पण्डितराज। यह भारतीय इतिहास की "एकमात्र घटना" है जब किसी मुगल ने किसी हिन्दू को बेटी दी थी। लवंगी अब पण्डित राज की पत्नी थी।

युग बीत रहा था। पण्डितराज दारा शिकोह के गुरु और परम् मित्र के रूप में ख्यात थे। समय की अपनी गति है। शाहजहाँ के पराभव, औरंगजेब के उदय और दारा शिकोह की निर्मम हत्या के पश्चात पण्डितराज के लिए दिल्ली में कोई स्थान नहीं रहा।

पण्डित राज दिल्ली से बनारस आ गए, साथ थी उनकी प्रेयसी लवंगी।

बनारस तो बनारस है, वह अपने ही ताव के साथ जीता है। बनारस किसी को इतनी सहजता से स्वीकार नहीं कर लेता। और यही कारण है कि बनारस आज भी बनारस है, नहीं तो अरब की तलवार जहाँ भी पहुँची वहाँ की सभ्यता-संस्कृति को खा गई। यूनान, मिश्र, फारस, इन्हें सौ वर्ष भी नहीं लगे समाप्त होने में, बनारस हजार वर्षों तक प्रहार सहने के बाद भी "ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा...." गा रहा है। बनारस ने एक स्वर से पण्डितराज को अस्वीकार कर दिया। कहा- लवंगी आपके विद्वता को खा चुकी, आप सम्मान के योग्य नहीं।

तब बनारस के विद्वानों में पण्डित अप्पय दीक्षित और पण्डित भट्टोजि दीक्षित का नाम सबसे प्रमुख था, पण्डितराज का विद्वत समाज से बहिष्कार इन्होंने ही कराया।

पर पण्डितराज भी पण्डितराज थे, और लवंगी उनकी प्रेयसी। जब कोई कवि प्रेम करता है तो कमाल करता है। पण्डितराज ने कहा- लवंगी के साथ रह कर ही बनारस की मेधा को अपनी सामर्थ्य दिखाऊंगा।

पण्डितराज ने अपनी विद्वता दिखाई भी, पंडित भट्टोजि दीक्षित द्वारा रचित काव्य "प्रौढ़ मनोरमा" का खंडन करते हुए उन्होंने " प्रौढ़ मनोरमा कुचमर्दनम" नामक ग्रन्थ लिखा। बनारस में धूम मच गई, पर पण्डितराज को बनारस ने स्वीकार नहीं किया।

पण्डितराज नें पुनः लेखनी चलाई, पण्डित अप्पय दीक्षित द्वारा रचित "चित्रमीमांसा" का खंडन करते हुए " चित्रमीमांसाखंडन" नामक ग्रन्थ रच डाला।

बनारस अब भी नहीं पिघला, बनारस के पंडितों ने अब भी स्वीकार नहीं किया पण्डितराज को।

पण्डितराज दुखी थे, बनारस का तिरस्कार उन्हें तोड़ रहा था।

अषाढ़ की संध्या थी। गंगा तट पर बैठे उदास पण्डितराज ने अनायास ही लवंगी से कहा- गोदावरी चलोगी लवंगी? वह मेरी मिट्टी है, वह हमारा तिरस्कार नहीं करेगी।

लवंगी ने कुछ सोच कर कहा- गोदावरी ही क्यों, बनारस क्यों नहीं?  स्वीकार तो बनारस से ही करवाइए पंडीजी।

पण्डितराज ने थके स्वर में कहा- अब किससे कहूँ, सब कर के तो हार गया...

लवंगी मुस्कुरा उठी, "जिससे कहना चाहिए उससे तो कहा ही नहीं।  *गंगा से कहो, वह किसी का तिरस्कार नहीं करती। गंगा ने स्वीकार किया तो समझो शिव ने स्वीकार किया।"*

पण्डितराज की आँखे चमक उठीं। उन्होंने एकबार पुनः झाँका लवंगी की आँखों में, उसमें अब भी वही बीस वर्ष पुराना उत्तर था-"प्रेम किया है पण्डित! संग कैसे छोड़ दूंगी?"

पण्डितराज उसी क्षण चले, और काशी के विद्वत समाज को चुनौती दी-" आओ कल गंगा के तट पर, तल में बह रही गंगा को सबसे ऊँचे स्थान पर बुला कर न दिखाया, तो पण्डित जगन्नाथ शास्त्री तैलंग अपनी शिखा काट कर उसी गंगा में प्रवाहित कर देगा......"

पल भर को हिल गया बनारस, पण्डितराज पर अविश्वास करना किसी के लिए सम्भव नहीं था। जिन्होंने पण्डितराज का तिरस्कार किया था, वे भी उनकी सामर्थ्य जानते थे।

अगले दिन बनारस का समस्त विद्वत समाज दशाश्वमेघ घाट पर एकत्र था।

*पण्डितराज घाट की सबसे ऊपर की सीढ़ी पर बैठ गए, और गंगालहरी का पाठ प्रारम्भ किया।*

लवंगी उनके निकट बैठी थी।

गंगा बावन सीढ़ी नीचे बह रही थी। *पण्डितराज ज्यों ज्यों श्लोक पढ़ते, गंगा एक एक सीढ़ी ऊपर आती।*

बनारस की विद्वता आँख फाड़े निहार रही थी।

*गंगलहरी के इक्यावन श्लोक पूरे हुए, गंगा इक्यावन सीढ़ी चढ़ कर पण्डितराज के निकट आ गयी थी।*

पण्डितराज ने पुनः देखा लवंगी की आँखों में,

अबकी लवंगी बोल पड़ी- क्यों अविश्वास करते हो पण्डित ? प्रेम किया है तुमसे...

*पण्डितराज ने मुस्कुरा कर बावनवाँ श्लोक पढ़ा। गंगा ऊपरी सीढ़ी पर चढ़ी और पण्डितराज-लवंगी को गोद में लिए उतर गई।*

बनारस स्तब्ध खड़ा था, पर गंगा ने पण्डितराज को स्वीकार कर लिया था।

तट पर खड़े पण्डित अप्पाजी दीक्षित ने मुंह में ही बुदबुदा कर कहा- क्षमा करना मित्र, तुम्हें हृदय से लगा पाता तो स्वयं को सौभाग्यशाली समझता, पर धर्म के लिए तुम्हारा बलिदान आवश्यक था। बनारस झुकने लगे तो सनातन नहीं बचेगा।

*युगों बीत गए।*

*बनारस है, सनातन है, गंगा है तो उसकी लहरों में पण्डितराज भी है....।*

(वह कहानी जो मुझे बेहद पसंद है लेखक का नाम पता नही अगर किसी साथी को ज्ञात हो तो संदर्भ ग्रंथ का के बारे मैसेज करने का कस्ट करें)

🙏💐

बुधवार, 29 मार्च 2023

तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ

 

प्रभु श्री राम में रचा बसा आजमगढ़ का जनमानस

सरयू, तमसा, प्रथम देव व दोहरीघाट जैसे पौराणिक स्थल कराते हैं प्रभु श्री राम की अनुभूति

आजमगढ़ । पूरा देश आज रामनवमी का पर्व हर्षोल्लास से मना रहा है। आजमगढ़ का जनपद इस तरह से बसा ही हुआ है कि राम-राम की प्रतिध्वनि इसके कण-कण से सुनाई देती है। पहली बार प्रदेश  में ऐसा हो रहा है कि कोई मंदिर नही बचा जहां रामनवमी के अवसर पर भजन किर्तन, रामचरित मानस पाठ आदि न आयोजित किये जा रहे हों। तमसा, सरयू प्रथम देव तथा दोहरीघाट आदि पौराणिक स्थल मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की अनुभूति तो कराते ही रहते हैं, परंतु पहली बार ऐसा हो रहा है कि हिंदु जनमानस की आस्था का सागर हिलोरे ले रहा है। 

जनपद के पौराणिक नदी तमसा की बात करते हैं बाल्मिकी रामायण हो या फिर गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस सब में यह वर्णन है कि वन जाते समय भगवान राम का प्रथम निवास तमसा तट ही था और पूरा आजमगढ़ तमसा के तट पर ही बसा है। गोस्वामी तुलसीदास रामचरित मानस के अयोध्याकांड में दोहा संख्या 84 में यह लिखकर कि 

बालक वृद्ध बिहाइ गृहं लगे लोग सब साथ।

तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ ।।

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस के अयोध्याकांड में लिखते हैं कि 

जहां रामु तहं सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू।।


यह कहते हुये पूरे अयोध्यावासी अयोध्या को छोड़कर भगवान राम के साथ चल पड़ते हैं।  तमसा तट पर भगवान श्री राम अपने प्रथम निवास के दौरान अयोध्यावासियों को बहुत समझाते हैं अंतत: थके हारे अयोध्यावासी जब सो जाते हैं तो प्रभु श्री राम उन्हे सोता हुआ छोड़कर श्रृंगबेरपुर के लिये प्रस्थान कर जाते हैं। जनपद के अतरौलिया विकास खंड के अगया गांव से आगे एक स्थल प्रथम देव बहिरादेव के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थल पर रविवार व मंगलवार को बहुत भीड़ होती है। स्थल को देखकर लगता है कि प्राचीन काल में यह स्थल जंगल के मध्य रहा होगा। आज भी इस स्थल को नामित 52 बिगहे से अधिक की भूमि स्थित है। इस स्थल के प्रति ऐसी मान्यता है कि प्रभु श्री राम, लक्ष्मण व विश्वामित्र यहां ठहरे हुये थे। किवदंतियां ऐसी भी है कि इस वनस्थली के समीप जंगल में ऐसी वनस्पतियां उगती थीं कि जिनके भक्षण के बाद भूख नही लगती थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इन  का प्रभु श्री राम ने भक्षण किया था। जनपद के उत्तरी छोर पर प्रवाहमान सरयू नदी के जल में स्नान करना हर धर्म प्रेमी की लालसा होती है। यह इच्छा इसलिये भी बलवती रहती है कि मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्री राम अपने उत्तरायण में पूरे अयोध्यावासियों सहित  सरयू में प्रवेश कर गये थे। ऐसी पवित्र नदी  मे भला कौन स्नान नही करना चाहेगा ? यह आजमगढ़वासियों का सौभाग्य है कि वो अन्य तीर्थस्थलों पर नदियों में स्नान करने के बजाय वो मां सरयू की पावन गोद में बैठ कर हजारों तीर्थों के पुण्य को प्राप्त कर लेते हैं। जनपद के उत्तरी छोर पर स्थित जनपद की सीमा से सटे मऊ जनपद का दोहरीघाट का मुक्तिधाम प्रभु श्री राम व भगवान परशुराम की मिलन स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। दोहरीघाट को लेकर यही मान्यता है कि यहां दो हरियों का मिलन हुआ था। जनपद आजमगढ़ और मऊ दोनो से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवलास का प्रसिद्ध मेला प्रभु श्री राम की याद दिलाता है कि ऐसी किवदंति है कि मुनि विश्वामित्र के साथ जाते हुये प्रभु श्री राम देवल ऋषि के आश्रम रूके और स्नान ध्यान कर भगवान सूर्य की अराधना की तत्पश्चात वह राक्षसों का वध करने के लिये प्रस्थान किये। आज भी देवलास के 16 मंदिर व भगवान सूर्य का ऐतिहासिक मंदिर इस बात की गवाही देता रहता। लोक आस्था के इस महापर्व पर प्रभु श्री राम की अनुभूति हर कोई महसूस करता है और राम नाम के सागर में गोते लगाते हुये खुद को धन्य महसूस करता है।

मंगलवार, 3 जनवरी 2023

जिन पर बचाने की जिम्मेदारी वही बने सौदागर


  प़त्रकार, अधिकारी, राजनेता सब है विदेशी पक्षियों  के मांस के शौकीन

   अस्तित्वविहीन हो रहा सगड़ी का ताल सलोना

   कभी पर्यावरण मंत्री ने देखा था पक्षी विहार बनाने का सपना

   आजमगढ़। सगड़ी तहसील के आसपास के गांवों मे एक किस्सा मशहूर है अगर जाड़े में मेंहमानों की खातिरदारी में  चिड़ियां नही खिलाये तो क्या खिलाये ? जी हां ललसर, टिकवा, न जाने कितने प्रकार के विदेशी पक्षी जिंदा ही केवल उनके पंख तोड़कर बेचे जाते हैं। पूरी रात जाल मे फंसे विदेशी मेहमान जिन्हे शिकारी फंदा कहते की दर्दभरी चीखों से ताल की नीरवता भंग होती रहती तब तक जब तक शिकारी उन्हे फंदे से निकाल उनके पंख तोड़ ठिकाने नही लगा देते। स्वाद व गर्म गोस्त और चंद सिक्कों की चाहत ने पूरे ताल सलोना की जैव विविधता को नष्ट करके रख दिया है अब विदेशी पक्षियों व विविध प्रकार की जीवों व वनस्पतियों की आरामगाह नही वरन शौकीनों की शिकारगाह बन गई है। यह वही स्थान है जिसकी जैविक विविधता को देखकर पूर्व पर्यावरण मंत्री स्व़ रामप्यारे सिंह ने इसे पक्षी विहार बनाने का सपना देखा था। उनकी बहु वंदना सिंह का पांच  साल का विधायकी का कार्यकाल पूरा हुआ है वर्तमान में प्रदेश सरकार में उनकी पहुंच बहुत ऊपर तक मानी जाती है क्या वह अपने श्वसूर का सपना पूरा करेंगी, क्या राज्य सरकार एक पूर्व पर्यावरण मंत्री की सिफारिशों पर गौर करेगा यह कहानी आगे, पहले कराहते, घिघियाते रोते बिलखते ताल सलोना की वेदना सुन लेते हैं।

   सगड़ी तहसील के पूरब में जीयनपुर बाजार से लगभग तीन किलोमीटर पूर्व  कभी अजमतगढ़ स्टेट की मिल्कियत में शामिल ताल सलोना मखानों की खेती के लिये प्रसिद्ध था। प्राकृतिक आभा व पतित पावनी सरयू की अविरल धारा इस ताल सलोना को वर्ष भर जीवंत बनाये रखती थी। लगभग 977 एकड़ में फैले ताल के विस्तिृत भू भाग की खासीयत यह है कि यहां तिन्ना की पैदावार खूब होती जो एक प्रकार की घास है जिसके दाने विदेशी पक्षियों को खूब पसंद आते हैं। पर्याप्त मात्रा में  मछलियां भी इस ताल की पहचान हैं तो इसके किनारे हजारों प्रकार की वनस्पतियां इसकी जैव विविधता की नैसर्गिकता को समृद्ध करती हैं। इतने विशाल ताल पर अजमतगढ़ स्टेट  या यूं कहें कि ताल के आस-पास के गावों मल्लाहों का एकाधिकार रहा है। ताल के असली मालिक भी यही है यह ताल से मछलियों  का शिकार करते हैं, मखानों की खेती करते है, तिन्ना चावल की पैदावार करते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं। उनके इस कार्य से ताल की जैव विविधता नष्ट होती है तो हो जैव विविधता से उनका क्या लेना देना ? वन विभाग उन्हे समझा भी नही पाता की शिकार का एक मानक है , पर्यावरण को बचाये रखना हम सबकी सामुहिक जिम्मेदारी भी है। मखानों की खेती, मछली का शिकार, तिन्नी का चावल उगाने से कोई उन्हे रोकता नही है और रोकना भी नही चाहिये। मेरा सवाल यह है कि अगर मल्लाह जिनकी आजीविका का साधन यह ताल है उनके उस ताल में  विदेशी पक्षियों का शिकार कैसे हो जाता है और यह शिकार करने वाले कौन लोग हैं ? जवाब हम सबको पता है और यही सच भी है। जिनका जीवन ताल पर निर्भर है उन्ही में  से कुछ लोग चंद सिक्कों की खातिर उनके ताल में  प्रजनन करने, बच्चे पैदा करने आये विदेशी पक्षियों के सौदागर बन जाते हैं। क्योंकि बिना ताल में गये साइबेरियाई पक्षियों का शिकार हो ही नही सकता। ताल के बेताज बादशाह मल्लाह जाति के कुछ लोग सांझ ढले आठ दस नावों के साथ पूरे  ताल मे, ताल के पानी से एक फिट पूरे ताल में बांस गाड़कर, बांसों में बांधकर एक फंदा लगाते हैं मच्छरदानी जैसा एक जाल जो पूरे ताल को इस पार से लेकर उस पार तक कवर करता है। यह जाल इतना बड़ा होता है कि एक बार कोई भी पक्षी तिन्ना खाने की गरज से नीचे उतरे तो जाल में  फंसने से बच ही नही सकता। रात में ये शिकारी फंदा लगाकर घरो को लौट आते हैं और भोर मे पूनः नाव लेकर अपने फंदों की ओर बढ़ते और फंदे मेें फसे विदेशी पक्षियों को फंदे से निकालकर उनके पंख तोड़कर बोरों में  भर जाता है। इस पूरे क्रिया कलाप में  धुंध, कोहरा, कड़ाके की सर्द और वनविभाग का साधनहीन होना उनकी मदद करते है। सुबह के 8 बजते-बजते विदेशी सैलानियों को बेच दिया जाता है। 300 से लेकर 600 रूपया जोड़ा तक बोली लगती है। वन विभाग के पास न तो अपनी नाव है न बोट और न ही उनके खेवनहार उन्हे भी इन्ही शिकारियों के मदद से ताल में  जाना पड़ता है। वन विभाग के सिपाही इन शिकारियों का कभी -कभी ताल के किनारे घात लगाकर इंतजार करते है और जब ये शिकारियों पक्षियों से भरे बोरे उतारते हैं तो पकड़े जाते है फिर शुरू होता है वही सदियों पूराना खेल। नतीजा शौकीन, अफसरों, नेताओ तक भी ये पक्षी उनकी थाली की शोभा बढ़ाने पहुंच जाते हैं वन विभाग की जेब गर्म होती है सो अलग। कोई कह सकता है कि इस बात का सबूत क्या है ? सबूत है वन विभाग द्वारा पकड़े जाने वाले शिकारी जो उसी जाति से  आते हैं जिनकी ताल से आजीविका चलती है । अगर ऐसा नही है तो आखिर विदेशी पक्षियों का शिकार कैसे हो रहा है यह वन विभाग ही बता दे। 

ताल  सलोना पक्षी बिहार का अधूरा सपना

  सगड़ी की राजनीति को प्रादेशिक शीर्ष तक पहुंचाने मंे जिस शख्सियत का नाम लिया जाता है वह हैं पूर्व पर्यावरण मंत्री स्वर्गीय रामप्यारे सिंह ! रामप्यारे सिंह जी ने ताल सलोना की जैव विविधता के महत्व को समझा था, उन्होने यह भी सोचा था कि कैसे ताल पर निर्भर हजारों की आबादी को रोजगार मुहैया कराते हुये ताल का सजग प्रहरी बनाया जाय। ताल सलोना पक्षी विहार के प्रोजेक्ट पर कागजी औपचारिकतायें पूरी हो चुकी थी पहल होना बाकी थी। कतिपय कारणों व समय के काल चक्र के कारण यह परियोजना कागजों में ही सिमटी रह गयी। पूर्व पर्यावरण मंत्री की विरासत संभाल रही उनकी पुत्रवधु वंदना सिंह सगड़ी क्षेत्र से विधायक रह चुकी हैं और वर्तमान प्रदेश सरकार में  उनकी बातें सुनी भी जाती हैं। क्या वह अपने श्वसूर स्व. रामप्यारे सिंह के सपने को साकार करने के लिये कोई कदम उठाती हैं या पक्षी बिहार बनने का सपना महज कागजी ख्वाब बनकर रह जाता है। 

ताल की बेशकीमती जमीन पर है भू मफियाओं  की नजर

ताल सलोना अजमतगढ़ नगर पंचायत से प्रारम्भ होकर कई किलोमीटर तक सड़क के किनारे-किनारे गया है। ऐसे में कुछ भू माफिया सड़क के किनारेे के काश्तकारों से ताल की जमीन है पानी लगता है कह कर औने पौने दाम पर जमीने खरीद लेते हैं और रक्बा पूरा कराने के नाम पर ताल के अंदर तक अपना चक होने का पत्थर लगाये हुये हैं। ताल सलोना का रकबा राजस्व के नक्शे में जितना उतना बनाये रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है लेकिन जिम्मेदारी निभाता कौन है ? नतीजा ताल सलोना की प्राकृतिक व आर्थिक रूप से बेशकीमती जमीन पर भू माफिया नजर गड़ाये हुये हैं और कुछ हद तक कब्जा भी कर चुके हैं। 


गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

सरयू के नीर में विलीन हो अमर हुये पंडित अमरनाथ


वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

शव यात्रा me



टूटी दलीय सीमायें

आजमगढ़। वरिष्ठ पत्रकार व वयोवृद्ध समाजसेवी पंडित अमरनाथ तिवारी को पूरे जनपद ने गुरूवार को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। शवयात्रा में दलीय सीमायें टूट  गई। आजमगढ़ स्थित उनके आवास व सगड़ी तहसील के खपरैला गांव में शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। जीयनपुर नगर पंचायत मे बाजार वासियों व पत्रकार जनों ने उन्हे पुष्पांजलि अर्पित कर उनकी शवयात्रा को विदा किया। 

पंडित अमरनाथ तिवारी जनपद के प्रतिष्ठित स्मिथ इंटर कालेज अजमतगढ़ के प्रधानाचार्य रहे इनके अतिरिक्त उनकी ख्याति आजमगढ़ जनपद के इतिहासकार के रूप में रही। सरयू नीरे तमसा तीरे उनकी प्रसिद्व पुस्तक रही इसके अतिरिक्त पंडित जी ने कपोत नामक पत्रिका का संपादन भी किया। वह लंबे समय तक पीटीआई, अमृत प्रभात व नार्दन इंडिया टाइम्स से जुडे रहे। ग्रामीण अंचल से लेकर जनपद व प्रदेश स्तरीय पत्रकारिता में उनका कोई जोड़ नही था, उनके चाहने वाले हजारों की संख्या में है। पत्रकारिता के दौरान पडित जी ने कभी मूल्यों से समझौता नही किया। अपनी सरलता व सहजता की वजह से वह जनप्रिय थे। 28 दिसबंर को उन्होने लगभग 95 वर्ष की अवस्था में  उन्होने देहत्याग किया। राहुल नगर मड़या स्थित उनके आवास पर शोक संवेदना ;व्यक्त करने वालो का तांता लगा रहा। उनका पैतृक आवास सगड़ी तहसील के जीयनपुर कोतवाली अंतर्गत खपरैला गांव में था। उनके निधन का समाचार सुनते ही गांव वासियों में शोक की लहर दौड़ गई।  गुरूवार को उनकी शवयात्रा जनपद मुख्यालय से जीयनपुर बाजार होते हुये खपरैला गांव पहुंची। जीयनपुर बाजार मेे नगर वासियो व पत्रकार जनों ने पुष्पांजलि अर्पित कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की जिसमे प्रमुख रूप से आनंद प्रकाश तिवारी, प्रवीण सिंह, यमुना प्रसाद चतुर्वेदी, ज्ञानेंद्र मिश्र, शिवदान चौरसिया, जीतबहादुर लाल, अंबिका प्रसाद, मुन्ना लाल चौरसिया, प्रदीप तिवारी, अनुराग चौरसिया, अमित तिवारी, डाक्टर महेद्र प्रसाद, भारत रक्षा दल के दिनेश मणि त्रिपाठी, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मीडिया पैनलिस्ट अमित तिवारी,शिवगोपाल जायसवाल, सहित सैकड़ो लोग उपस्थित रहे। खपैरला गांव में भी श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों का तांता लगा रहा। तमसा के तट का वासी सरयू के नीर मे सदा के लिये विलीन हो गया। 


मंगलवार, 29 नवंबर 2022

अपने कर्मस्थली में उपेक्षित हो गये मुंशी नर्वदेश्वर लाल


 रंग रोगन को तरस रही प्रतिमा,पार्क का अस्तित्व हुआ नष्ट 

नगर पंचायत की उदासीनता से लगा गंदगी का ढेर

 आजमगढ़ जनपद की सगड़ी विधानसभा को अपनी कर्मस्थली बना जनता जनार्दन की सेवा करने वाले महान साम्यवादी नेता मुंशी नर्वदेश्वर लाल अपनी कर्मस्थली में इस कदर उपेक्षित हुये कि उनकी एकमात्र निशानी उनकी प्रतिमा आज जीर्ण शीर्ण पड़ी हुई और वह पार्क जहां वह स्थापित है अपने अस्तित्व को खो चुका है। जीयनपुर नगर पंचायत ने उस पार्क की जमीन पर शौचालय बनवाकर हालत को बद से बदतर बना दिया है। गंदगी का ढेर बदबू और सड़ांध की वजह से अब उस स्थान की ओर कोई देखना तक पसंद नही करता। 

  तत्कालीन आजमगढ़ वर्तमान मऊ के घोसी तहसील के भटमिल्ला गांव निवासी कामरेड मुंशी नर्वदेश्वर लाल श्रीवास्तव का जन्म वर्ष 1932 में हुआ । उन्होने घाघरा की मार से पीड़ित व राजनैतिक रूप से उपेक्षित सगड़ी विधानसभा को अपनी कर्मस्थली बनाया और नगर पंचायत जीयनपुर में निवास करने लगे। कामरेड मुंशी नर्वदेश्वर लाल हमेशा पीड़ितों, मजलूमों के अधिकारों के लिये संघर्ष करते रहे। कोई भी फरियादी उनके दरवाजे से निराश होकर नही गया। वो हर जरूरत मंद के साथ दो कदम चलने के सिद्धांत में विस्वास रखते थे। जब भी जरूरत पड़ी उन्होने जनहित के मुद्दे पर सत्ता के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंकने में जरा भी देर नही लगाई। आज भी जानकार अमुवारी गांव में जमींदारी उन्मूलन के दौरान जमीन पर मालिकाना हक दिलाने के लिये उनके संघर्षाें को याद करते हैं, उनकी एक ललकार पर युवाओं की टोली अमुवारी की ओर बढ़ चली, “धन और धरती बट के रहेगी चलो जवानों अमुवारी“ का नारा देकर उन्होने जोश भरा पुलिस की लाठी चार्ज भी उनका हौसला तोड़ न सकी और मालिकाना हक मिला। न जाने कितने आंदोलनों में कामरेड मुंशी नर्वदेश्वर लाल जनता के साथ खड़े होकर सत्ता से मुठभेड़ करते रहे। जनता के चहेते इस नेता को सगड़ी के लोगों ने 1967 में भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी के टिकट पर अपना विधायक चुन लिया। यद्यपि यह विधानसभा का कार्यकाल महज दो वर्ष रहा। जीयनपुर के आदर्श नगर मुहल्ले में पत्रकार मन्नू लाल जायसवाल के आवास में अस्थायी रूप से रहने वाले नर्वदेश्वर लाल जी के दो पुत्र एक पुत्री थी पत्नी कामरेड संतोष कुमारी का जीवन संघर्षों से  Bhara Raha। मुंशी जी कभी धन संग्रह की ओर प्रवृत्त नही हुये, लगातार संघर्षों से उनकी रही सही पूंजी भी समाप्त हो गयी। एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हे फांकाकसी से भी गुजरना पड़ा मगर उन्होने उस दौर मे भी जनता के सच्चे सिपाही के तौर पर मुस्तैद नजर आये। 3 जनवरी 1982 को उनका स्वर्गवास हो गया। चूंकी उन्होने जनता के हक के लिये निरंतर लड़ाई लड़ी इसी आधार पर उन्हे जनता का सिपाही बता भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी ने उन्हे शहीद का दर्जा दिया और उनकी एक प्रतिमा की स्थापना जीयनपुर नगर पंचायत के मुबारकपुर तिराहे पर एक पार्क में स्थापित कर दी जो मुंशी नर्वदेश्वर लाल पार्क के नाम से जाना जाता रहा। नगर पंचायत जीयनपुर की गत पांच साल का कार्यकाल ऐसा रहा कि पार्क का अस्तित्व समाप्त हो गया और मुंशी जी की प्रतिमा जीर्ण शीर्ण अवस्था में पड़ी अपने हालत पर आंसू बहा रही है।

  

बुधवार, 15 जून 2022

आजादी का अमृत महोत्सव: कुछ याद उन्हे भी कर लो ..........

.आजमगढ़ जनपद के उत्तरी छोर पर स्थित सगड़ी तहसील की मिट्टी की तासीर ही ऐसी रही है कि यहां समय- समय पर ऐसे रण बांकुरे होते रहे हैं जिन्होने अपनी जान देकर भारत माता की अस्मिता की रक्षा की। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के शहीद व्यवसाई बंधु गोगा साव व भीखी साव रहे हों या फिर वीर चक्र विजेता शहीद सौदागर सिंह या कारगिल युद्ध में युद्ध की समाप्ति के उपरांत चलाये गये आपरेश विजय में दुर्गम चोटी 5685 पर अप्रतीम शौर्य का प्रदर्शन करने वाले मेंशन इन डिस्पैच वीर रामसमुझ यादव, एक से बढ़कर एक र्शोर्य गाथायें न केवल रोमांचित कर देेती हैं वरन देश भक्ति की भावना से सराबोर कर देती हैं-

गोगा साव व भीखी साव

आजमगढ़ जनपद का जब- जब इतिहास लिखा जायेगा आजादी के परवाने गोगा साव व भीखी साव का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। गोगा साव व भीखी साव का तत्कालीन अजमतगढ़ स्टेट में खांडसारी का बड़ा कारखाना था। इनके यहां बनी देशी चीनी व गुड़ ताल सलोना के रास्ते छोटी सरयू फिर घाघरा, गंगा नदी से जलमार्ग द्वारा कलकत्ता जाता था जो कि देश की राजधानी थी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार के सिंह कहे जाने वाले वीर कुंवर ंिसंह ने अंग्रेजों को कई जगह परास्त किया। उन्होने आजमगढ़ जनपद के अतरौलिया में अपनी छावनी बनाई। अतरौलिया में मिल मैन के नेतृत्व में आयी सेना को वीर कुंवर सिंह ने पराजित कर दिया। एक सेना डेम्स व मिल मैन के नेतृत्व में आयी जिसे आजमगढ़ के पास वीर कुंवर सिंह ने पराजित कर दिया। लार्ड कैनिंग ने अब मार्क के नेतृत्व में एक सेना भेजी वह भी कुंवर सिंह की वीरता की वजह से पराजित हो गई। कई युद्धों की वजह से कुंवर सिंह की सेना थक चुकी थी। अंग्रेजों के भय की वजह से छोटी- मोटी रियासतें उनकी मदद के लिये आगे आ नही रही थी। आजमगढ़ से बलिया के रास्ते कुंवर सिंह अपनी रियासत जगदीशपुर वापस जाना चाहते थे। इसके लिये उन्होने आजमगढ़ सेे बगहीडाढ़, अंजानशहीद, अजमतगढ़ के रास्ते का चयन किया। अंग्रेजी सेना पीछा न कर सके इसके लिये उन्होने बगहीडाढ़ के पुल को बारूद से उड़ा दिया। वीर कुंवर सिंह की अगली छावनी अजमतगढ़ स्टेट में पड़ी जहां जब राजवाड़ों नें उनकी मदद नहीं की तो अपनी धन सम्पदा व वैभव का मोह त्याग कर गोगा साव व भीखी साव ने अपने द्वारा बनाये गये शिव मंदिर के तहखाने में वीर कुंवर सिंह को शरण दी और सात कुओं में खांड़ घुलवा दिये जिससे कि सेना रस पी सके। धन सम्पदा, भोजन रसद देकर साव बंधुओं ने उन्हे अजमतगढ़ से आगे के लिये विदा किया। पीछे से आ रही अंग्रेजी सेना को जब साव बंधुओं द्वारा मदद किये जाने की सूचना मिली तो अंग्रेजों ने सारी सम्पत्ति जब्त कर गिरफ्तार कर लिया, मुकदमा चला साव बंधुओं को 18 सितम्बर 1858 को काला पानी की सजा दे दी गई। विवाहित गोगा साव के पुत्र नारायण साव के वंशज की एक़ पीढ़ी जीयनपुर में रहती जो गोगा व भीखी साव द्वारा निर्मित मंदिर व सुरंग की देख रेख करती है। उनके वंशज सुरेश गुप्त बताते हैं कि मंदिर ऐतिहासिक महत्व का है लेकिन अब सब धराशायी होने के करीब है, सात कुओं का जल हाल के दिनों तक मिठा था अब केवल एक ही कुंआ बचा है। मंदिर के आस पास की जमीनों पर भूमाफियाओं की नजर रहती है। किसी तरह संघर्ष करके इस ऐतिहासिक महत्व की चीजों को बचाने की कोशिस की जा रही है। सरकारी मदद मिल जाये तो यह स्थल अपने गौरव को प्राप्त कर ले। 

वीर चक्र विजेता अमर शहीद सौदागर सिंह

आजमगढ़ जनपद मुख्यालय से गोरखपुर मार्ग पर लगभग 22 किमी की दूरी पर पूनापार गांव निवासी महातम सिंह व बेइला देवी के मझले पुत्र सौदागर सिंह का जन्म 11 अप्रैल 1926 को हुआ था । यह रजादेपुर मठ पर अवैतनिक रूप से गरीब बच्चों को पढ़ाते थे। वर्ष 1948 में भर्ती केंद्र फतेहपुर से राजपूताना रेजीमेंट में भर्ती हो गये। वर्ष 1958 में यह सेना में लांस नायक बन गये। वर्ष 1960 मंे यह सेना में हवलदार बने तथा पूरे मनोयोग से एक सैनिक व्रत का पालन करने लगे। वर्ष 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान जयपुर से सौदागर सिंह का जत्था लद्दाख क्षेत्र के लिये रवाना हुआ। युद्ध अपने चरम पर था भारतीय सैनिक थ्री नाट थ्री के रायफल से चीनी दुश्मनों से लोहा ले रहे थे। वीर सौदागर सिंह का जत्था चीनीयों के घेरे में आ गया। अधिकांश भारतीय सैनिक मारे गये। ़ कई बिछड़ गये। सौदागर सिंह एक खोह में छिपे हुये थे चीनी सैनिक उनकी ओर बढ रहे थे। सौदागर सिंह की रायफल जाम हो चुकी थी, उन्होने पहले आने वाले चीनी सैनिक के सीने में अपनी संगीन घुसेड़ दी और उसका हथियार छीन लिया वह एक नया हथियार लेकिन अपने अनुभव से उस हथियार से पीछे आ रहे चीनीयों पर फायर झोंक दिया। उस टुकड़ी मंे जितने चीनी सैनिक थे सब के सब धराशायी हो गये। सौदागर सिंह ने मृतक लगभग एक दर्जन चीनी सैनिकों के हथियार बटोर कर व भूखे प्यासे दुर्गम राहों से होते हुये 10 दिनों की अनजान यात्रा के उपरांत अपनी कंपनी तक पहुंचने में सफल हो गये। उन्होने कंपनी कमाण्डर को सैल्युट किया और चीनीयों से छीने गये हथियार सौंप दिये। वह हथियार एस. एल. आर थी। इस वीरता की चर्चा तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तक पहुंची, उन्होने एस एल आर मंगवाकर निरीक्षण किया। अदम्य वीरता के लिये सौदागर सिंह को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। हवलदार सौदागर सिंह की प्रोन्नति हो गये और वह नायब सूबेदार हो गये। वर्ष 1965 के भारत -पाक युद्ध के दौरान में भी वीर सौदागर सिंह अत्यंत उत्साह के साथ भाग लिया क्षम्म क्षेत्र में विजय मिलने के उपरांत लाहौर की ओर बढ़ते हुये दुश्मन द्वारा बिछाई गयी माइन की चपेट में आ गये उनकी जीप जिसमें वह अन्य सैनिकों के साथ सवार थे पूरी तरफ क्षति ग्रस्त हो गयी। भारत माता की रक्षा करते जनपद का यह लाल 2 सीतम्बर 1965 को शहीद हो गया फिजा में रह गई हैं तो उनकी शहादत के किस्से। 

कारगिल शहीद मेंशन इन डिस्पैच वीर रामसमुझ यादव

जनपद के आजमगढ़-गोरखपुर मार्ग पर जनपद  मुख्यालय से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अंजानशहीद गांव का दियार देश पर कुर्बान होने का जज्बा रखने वालों का दियार रहा है। इसी से सटे नत्थूपुर गांव में 30 अगस्त 1997 को राजनाथ यादव व माता प्रतापी देवी के पहले संतान के रूप में वीर रामसमुझ यादव का जन्म हुआ। रामसमुझ बचपन से ही साहसी व निर्भीक थे। घर की आर्थिक हालत अच्छी नही थी। मेहनत मजदूरी करके रामसमुझ यादव ने अपनी पढ़ाई पूरी की। हाईस्कूल व इंटरमीडियेट की शिक्षा मौलाना आजाद इंटर कालेज अंजानशहीद से पूर्ण करने के पश्चात स्नातक की शिक्षा गांधी पी जी कालेज मालटारी से प्राप्त की। वर्ष 1997 में वाराणसी में आर्मी में भर्ती हुए। इनकी नियुक्ति 13 वीं कुमायूं रेजीमेण्ट हुई तथा इनकी पहली तैनाती सियाचीन ग्लेशियर में हुई। कारगिल युद्ध में इनकी पलटन को जंग के लिये भेजा गया। कारगिल के तुरर्तुक पहाड़ी पर चोटी 5685 को दुश्मनों से  खाली कराते समय इन्होने अतुलनीय शौर्य का प्रदर्शन किया । 30 अगस्त 1999 को पड़ोसी देश के कई सैनिकों को शहीद करने के बाद इन्होने अपने सीने पर गोली खायी और भारत माता की रक्षा करते-करते शहीद हो गये। उनकी वीरता का उल्लेख मंेशन इन डिस्पैच के साथ किया गया। वीर रामसमुझ अपने पीछे एक भाई प्रमोद यादव व बहनी मीना देवी माता- प्रतापी देवी व पिता राजनाथ यादव को छोड़ गये हैं। उनकी याद में प्रतिवर्ष नत्थूपुर गांव में एक विशाल शहीद मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में आस-पास के जनपदों के शहीद परिवारों को सम्मानित किया जाता है।





शिक्षा से ही मिटेंगी दिलों के बीच की दूरियां: मनोज


 कैरियर फांउडेशन एकेडमी का हुआ  उद्घाटन 

सगड़ी। सगड़ी तहसील के अंजानशहीद में छत्तरपुर खुशहाल मोड़ पर एक शिक्षण संस्थान कैरियर फांउडेशन एकेडमी का उद्घाटन करते हुये वालीवुड के प्रख्यात गीतकार मनोज यादव ने कहा कि शिक्षा आज के समाज की पहली जरूरत बननी चाहिये। यही वह जरिया है जिससे समाज को लोगों के बीच दिलों की दूरियां है उसे मिटाया जा सकेगा। 


सगड़ी क्षेत्र के कुछ पढ़े लिखेे नौजवानो ने एक समूह बनाकर ऐसे बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है जो अच्छी और गुणवत्ता युक्त शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। बुधवार को प्रसिद्ध गीतकार मनोज यादव ने कैरियर फाउंडेशन एकेडमी का फीता काटकर उद्घाटन किया तथा इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुये कहा कि शिक्षा  वह दीपक है जो जलता है तो न जाने कितने घर रौशन होते हैं। उन्होने कहा कि सिर्फ नौकरी के लिये पढ़ाई नही होनी चाहिये एक पढ़ा लिखा आदमी कोई भी कार्य करेगा तो उसमें कुछ अच्छा ही करेगा। इस अवसर पर प्रमोद यादव, राकेश यादव, सदानंद़, अमरजीत , रातुल कुमार यादव, दयाराम यादव, राहुल, बुधिराम, अभिषेक यादव, रामरूप, अवनीश, योगेंद्र, भृगु साहनी सहित क्षेत्र के सैकड़ लोग उपस्थित रहे। 


देवी

ऐसा क्यों होता है तिवारी सर, कि आदमी जिसके लिये पूरी दुनिया छोड़ देता हैे वही उसको छोड़ देता है। क्या प्रेम में किसी से वफा की उम्मीद नही की ज...