संदेश

अगस्त, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खेत बेचवा

चित्र
                        खेत बेचवा बड़ा नाम था पंडित रामदीन मिश्रा का अपने गांव में वो ढाई बिगहे के काश्तकार थे। समय के साथ पंडित जी अपने उमर के चौथेपन में थे, उन्होने अपनी जिंदगी खेती बाड़ी और कथा वार्ता करके काटी थी। उनके समय में   दरवाजे पर हमेशा दो लगेन चउवा जरूर रहते थे। पंडित जी सुबह तड़के जब तक दो खांची गोबर की खाद खेत में फेक नही लेते उनको चैन नही मिलता था। यह उनका नित्य का काम था। चार दाना काली मिर्च के मुंह में  डाल कर वह दोपहर तक खेत में मेंहनत करते वो अपने साथ एक पीले रंग का झोला रखते थे, उस झोले में एक छोटी सी टिफिन में उनके ठाकुर बाबा होते थे, अगर कभी खेतों में काम करते हुये उन्हे देर हो जाती तो वहीं खेत से सटे कूंयें पर ही स्नान कर लेते और ठाकुर बाबा को नहवा कर तुलसी दल और काली मिर्च तथा एक टुकड़ा गुड़ मुंह में डाल लेते ताकि खर सेवर न हो। पंडित जी उत्तम खेती मध्यम बान वाले फिलासफी को सही मानते थे, खेती को संवारने के बाद ही पूजा पाठ और जजमानी देखते थे। पंडित जी को अपने खेतों से बहुत प्यार था वो कहा करते थ...

”धंधा“

चित्र
’मां कसम अगर भगवान कभी पैसा दिया न तो उसके दोनो बच्चों को मै पाल लूंगा’ सिगरेट का गहरा कस लेकर नाक से ढेर सारा धूंआ छोड़ते मुन्नू मिश्रा ने कहा, प्रत्युत्तर में राजेश केवल हामी भर सका था।  हरिश्चंद्र घाट से टहलते-टहलते दोनो चेत सिंह घाट चले आये थे। बनारस के घाट शाम हो या सुबह टहलने का एक अलग ही आनंद देते हैं। एक घाट से सटा दूसरा घाट कब आ जाता है, पता ही नही चलता, देशी और विदेशी सैलानियों को निहारते निहारते राह कट जाती है। दोनो चेत सिंह घाट पर बैठ गये, राजेश की उत्सुकता बड़ी जबरदस्त थी लेकिन वो कुछ पूछ नही पा रहा था। राजेश चाह रहा था कि मुन्नू डिटेल से बताये लेकिन एक अन्जाना सा खौफ व मुन्नू का शातिरपना मुन्नू को राजेश के सामने खुद को खोलने से रोके हुये था। राजेश आजमगढ़ जनपद का रहने वाला था, वो बनारस एमसीए की तैयारी करने गया था। रवींद्रपुरी कालोनी में एक कोचिंग ज्वाइन कर वो कालोनी से सटे एक मुहल्ले में कमरा लेकर रहने लगा था। कोचिंग जाने की राह पर बना बाबा कीनाराम का आश्रम उसे आकर्षित करता था। आश्रम से सटे ही बस्ती थी जिसकी टेढ़ी मेढ़ी गलियों में दो चार कदम चलने के बाद उसका रूम आ जाता था। ...