खेत बेचवा
खेत बेचवा बड़ा नाम था पंडित रामदीन मिश्रा का अपने गांव में वो ढाई बिगहे के काश्तकार थे। समय के साथ पंडित जी अपने उमर के चौथेपन में थे, उन्होने अपनी जिंदगी खेती बाड़ी और कथा वार्ता करके काटी थी। उनके समय में दरवाजे पर हमेशा दो लगेन चउवा जरूर रहते थे। पंडित जी सुबह तड़के जब तक दो खांची गोबर की खाद खेत में फेक नही लेते उनको चैन नही मिलता था। यह उनका नित्य का काम था। चार दाना काली मिर्च के मुंह में डाल कर वह दोपहर तक खेत में मेंहनत करते वो अपने साथ एक पीले रंग का झोला रखते थे, उस झोले में एक छोटी सी टिफिन में उनके ठाकुर बाबा होते थे, अगर कभी खेतों में काम करते हुये उन्हे देर हो जाती तो वहीं खेत से सटे कूंयें पर ही स्नान कर लेते और ठाकुर बाबा को नहवा कर तुलसी दल और काली मिर्च तथा एक टुकड़ा गुड़ मुंह में डाल लेते ताकि खर सेवर न हो। पंडित जी उत्तम खेती मध्यम बान वाले फिलासफी को सही मानते थे, खेती को संवारने के बाद ही पूजा पाठ और जजमानी देखते थे। पंडित जी को अपने खेतों से बहुत प्यार था वो कहा करते थ...