जामुन के वे बेर
मई और जून की बेतहाशा तपिश के बाद मानसून के आगमन का ज्योंही संकेत मिलता है, जामून के हरे-हरे फल सांवलें होने लगते हैं और कुछ दिनों में शालीग्राम की तरह हो जाते हैं वही शालीग्राम जो लगभग हर हिंदू घर में पूजे जाते हैं, अगर घर में पूजे न भी जाते हों तो कथा वार्ता में शालीग्राम जी के दर्शन पंडित जी करा ही देते हैं, कोई उन्हे प्यार से ठाकुर जी कहता है तो कोई कान्हा जी। एक रोज मनीष की पढ़ाई की मेज पर किसी ने स्नेह भरे जामुनों का एक डलिया लाकर रख दिया, जामुनों का जो स्वाद था सो था ही लेकिन देने वाले के अपनत्व ने मनीष का दिल जीत लिया। जब तक वह पढ़ता रहा जामुनों का स्वाद लेता रहा। जामुन देने वाले को यह देखकर शायद खुशी हुई कि उसकी लाई हुई चीज मनीष को पसंद आई। जामुुन मनीष को पसंद है यह समझ अगले दिन जामुन लाने वाला उसी डलिया में पिछले दिन से ज्यादा जामुन लेकर आया। मनीष ने आज बहुत नोटिस तो नही किया लेकिन उसने जामुनों को बड़े ही जतन से रखवा दिया कि जब उसे फुरसत में आराम से खायेगा। दोपहर बीता जब मनीष अपनी दैनिक दिनचर्या से खाली हुआ तो उसे जामुनों का ख्याल आया। उसने जामुनों के तीन हिस्से किये ए...