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जामुन के वे बेर

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 मई और जून की बेतहाशा तपिश के बाद मानसून के आगमन का ज्योंही संकेत मिलता है, जामून के हरे-हरे फल सांवलें होने लगते हैं और कुछ दिनों में शालीग्राम की तरह हो जाते हैं वही शालीग्राम जो लगभग हर हिंदू घर में पूजे जाते हैं, अगर घर में पूजे न भी जाते हों  तो कथा वार्ता में शालीग्राम जी के दर्शन पंडित जी करा ही देते हैं, कोई उन्हे प्यार से ठाकुर जी कहता है तो कोई कान्हा जी। एक रोज मनीष की पढ़ाई की मेज पर किसी ने स्नेह भरे जामुनों का एक डलिया लाकर रख दिया, जामुनों का जो स्वाद था सो था ही लेकिन देने वाले के अपनत्व ने मनीष का दिल जीत लिया। जब तक वह पढ़ता रहा जामुनों का स्वाद लेता रहा। जामुन देने वाले को यह देखकर शायद खुशी हुई कि उसकी लाई हुई चीज मनीष को पसंद आई। जामुुन मनीष को पसंद है यह समझ अगले दिन जामुन लाने वाला उसी डलिया में पिछले दिन से ज्यादा जामुन लेकर आया। मनीष ने आज बहुत नोटिस तो नही किया लेकिन उसने जामुनों को बड़े ही जतन से रखवा दिया कि जब उसे फुरसत में आराम से खायेगा। दोपहर बीता जब मनीष अपनी दैनिक दिनचर्या से खाली हुआ तो उसे जामुनों का ख्याल आया। उसने जामुनों के तीन हिस्से किये ए...

“मैनेजर”

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सबसे बढ़ियां तो लेडीज टीचर होती हैं उन्हे चाहिये ही क्या ? कुछ हजार रूपये साल में एक दो सूट के कपड़े बतौर ईनाम दे दो पड़ी रहेंगी, जब तक ससुराल चली नही जाती वो तब तक संस्था की सेवा करती रहती हैं। मैनेजर साहब ने अपना अनुभव शेयर करते हुए प्राईवेट स्कूलों का निचोड़ सबके सामने रख दिया। मैनेजर साहब का बड़ा बोल बाला था। जैसे तैसे पहले करकट में, फिर किराये के मकान में स्कूल डाला, गढ़ही और पोखरी को कब्जियाते हुए पचास प्रतिशत के घूस पर विधायक और सांसद निधि की बदौलत उन्होने एक विद्यालय खड़ा कर लिया। जहां तक उन्हे मान्यता मिली उन कक्षाओं तक विद्यालय तो चलाते रहे उसके आगे की कक्षाओं को अन्य मान्यता प्राप्त विद्यालयों से अटैच करके कक्षाओं को पास कराने की गारंटी के नाम पर चलाते रहे। इस धंधे से लाखों कमाया उन्होने, धीरे-धीरे मान्यता भी मिल गयी। इनके विद्यालय में पढ़ाने वाले अध्यापक एक हजार से पंद्रह सौ रूपये और अधिकतम 2500 रूपये प्रतिमाह पर खटते मिल जायेंगें। अध्यापकों की योग्यता से इन्हे कहां मतलब, जैसा दाम वैसा काम, इंटर पास इंटर को पढ़ा रहा है। हाईस्कूल फेल अध्यापक हाईस्कूल का मास्साहब बना है, शर्त यह है क...

सोना

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         "सोना“ "जिंदगी से कीमती सोना होता है”  यह बात मैं पूरे होशो हवास में कह रहा हूं कि जिंदगी से कीमती सोना होता अब आप कहेंगें कि अजीब अहमक है, तो श्रीमान मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं कि जिंदगी से कीमती सोना होता है। अब आप कहेंगें कि भाई चलो कह रहे हो तो मान ही लेते हैं मगर इस बात के पीछे तुम्हारी सोच क्या है ? तर्क क्या ? सबूत क्या है ? तो नीचे दी गई एक बिल्कुल सच्ची कहानी पढ़िये आपको जरूर यकीन हो जायेगा कि जिंदगी से कीमती सोना होता है।  एक लड़का था नाम था उसका समीर, सीधा, साधा सच्चा, परिश्रमी, ईमानदार बस एक ही अवगुण था कि वह बहुत ज्यादा इमोशनल था, उससे किसी का दुख बर्दाश्त नही होता था तो वह सबके सुख-दुख का साथी था। पढ़ाई लिखाई में वह ठीक -ठाक था सो समय से नौकरी लग गई, पैसे की कोई कमी रह नही गई। उसकी आफिस में एक लड़की से उसकी दोस्ती हो गई लड़की अभी ट्रेनी थी, जुगत लगाकर कर वह प्रशिक्षु बन तो गई थी लेकिन उसकी नौकरी तभी होगी जब वह अपने प्रशिक्षण के एक वर्ष के बाद होने वाली परीक्षा को पास करेगी। मानसी देखने में सुंदर थी, चेहरा आकर्षक, नैन नक्श तीखे पहली नज...

पण्डितराज और लवंगी की प्रेमकथा

इतिहास प्रसिद्ध बनारस की सत्य घटना *जब 52 सीढी उपर चढकर मां गंगा ने "पण्डितराज को अपनी गोद में लिया*🌹 सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध था, दूर दक्षिण में गोदावरी तट के एक छोटे राज्य की राज्यसभा में एक विद्वान ब्राह्मण सम्मान पाता था, नाम था जगन्नाथ शास्त्री। साहित्य के प्रकांड विद्वान, दर्शन के अद्भुत ज्ञाता। इस छोटे से राज्य के महाराज चन्द्रदेव के लिए जगन्नाथ शास्त्री सबसे बड़े गर्व थे। कारण यह, कि जगन्नाथ शास्त्री कभी किसी से शास्त्रार्थ में पराजित नहीं होते थे। दूर-दूर के विद्वान आये और पराजित हो कर जगन्नाथ शास्त्री की विद्वता का ध्वज लिए चले गए। पण्डित जगन्नाथ शास्त्री की चर्चा धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में होने लगी थी। उस समय दिल्ली पर मुगल शासक शाहजहाँ का शासन था। शाहजहाँ मुगल था, सो भारत की प्रत्येक सुन्दर वस्तु पर अपना अधिकार समझना उसे जन्म से सिखाया गया था। पण्डित जगन्नाथ की चर्चा जब शाहजहाँ के कानों तक पहुँची तो जैसे उसके घमण्ड को चोट लगी। "मुगलों के युग में एक तुच्छ ब्राह्मण अपराजेय हो, यह कैसे सम्भव है ?" शाह ने अपने दरबार के सबसे बड़े मौलवियों को बुलवाया और जगन्ना...

तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ

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  प्रभु श्री राम में रचा बसा आजमगढ़ का जनमानस सरयू, तमसा, प्रथम देव व दोहरीघाट जैसे पौराणिक स्थल कराते हैं प्रभु श्री राम की अनुभूति आजमगढ़ । पूरा देश आज रामनवमी का पर्व हर्षोल्लास से मना रहा है। आजमगढ़ का जनपद इस तरह से बसा ही हुआ है कि राम-राम की प्रतिध्वनि इसके कण-कण से सुनाई देती है। पहली बार प्रदेश  में ऐसा हो रहा है कि कोई मंदिर नही बचा जहां रामनवमी के अवसर पर भजन किर्तन, रामचरित मानस पाठ आदि न आयोजित किये जा रहे हों। तमसा, सरयू प्रथम देव तथा दोहरीघाट आदि पौराणिक स्थल मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की अनुभूति तो कराते ही रहते हैं, परंतु पहली बार ऐसा हो रहा है कि हिंदु जनमानस की आस्था का सागर हिलोरे ले रहा है।  जनपद के पौराणिक नदी तमसा की बात करते हैं बाल्मिकी रामायण हो या फिर गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस सब में यह वर्णन है कि वन जाते समय भगवान राम का प्रथम निवास तमसा तट ही था और पूरा आजमगढ़ तमसा के तट पर ही बसा है। गोस्वामी तुलसीदास रामचरित मानस के अयोध्याकांड में दोहा संख्या 84 में यह लिखकर कि  बालक वृद्ध बिहाइ गृहं लगे लोग सब साथ। तमसा तीर निवासु किय प्र...

जिन पर बचाने की जिम्मेदारी वही बने सौदागर

  प़त्रकार, अधिकारी, राजनेता सब है विदेशी पक्षियों  के मांस के शौकीन    अस्तित्वविहीन हो रहा सगड़ी का ताल सलोना    कभी पर्यावरण मंत्री ने देखा था पक्षी विहार बनाने का सपना    आजमगढ़। सगड़ी तहसील के आसपास के गांवों मे एक किस्सा मशहूर है अगर जाड़े में मेंहमानों की खातिरदारी में  चिड़ियां नही खिलाये तो क्या खिलाये ? जी हां ललसर, टिकवा, न जाने कितने प्रकार के विदेशी पक्षी जिंदा ही केवल उनके पंख तोड़कर बेचे जाते हैं। पूरी रात जाल मे फंसे विदेशी मेहमान जिन्हे शिकारी फंदा कहते की दर्दभरी चीखों से ताल की नीरवता भंग होती रहती तब तक जब तक शिकारी उन्हे फंदे से निकाल उनके पंख तोड़ ठिकाने नही लगा देते। स्वाद व गर्म गोस्त और चंद सिक्कों की चाहत ने पूरे ताल सलोना की जैव विविधता को नष्ट करके रख दिया है अब विदेशी पक्षियों व विविध प्रकार की जीवों व वनस्पतियों की आरामगाह नही वरन शौकीनों की शिकारगाह बन गई है। यह वही स्थान है जिसकी जैविक विविधता को देखकर पूर्व पर्यावरण मंत्री स्व़ रामप्यारे सिंह ने इसे पक्षी विहार बनाने का सपना देखा था। उनकी बहु वंदना सिंह का पांच ...