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आचार्य चंद्रबली पांडेय

आज आचार्य पं0 चन्द्रबली पाण्डेय की पुण्यतिथि है। हिन्दी के लिए आजीवन संघर्षरत रहने वाले उस मनीषी ने ही एक ऐसा वातावरण तैयार किया था जिसके फलस्वरूप हिन्दी आज राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन है। हिन्दी के लिए उनके मन में कितना प्रेम था, उनके इस कथन से जाना जा सकता है। 'मुझे विश्वास है कि जिस प्रकार महावीर के रोम रोम में राम का नाम अंकित था, मेरे जीवन के क्षण क्षण में हिन्दी की लगन की भावना निहित है।' पाण्डेय जी बहुत सादगीपसंद व्यक्ति थे। साधारण बनियान, देशी कुर्ता, धोती यही उनकी वेशभूषा थी। जूता नहीं पहनते थे। अग्नि में पकी हुई वस्तु का सेवन नहीं करते थे। वे केवल भिगोया हुआ चना, गेहूँ और कुछ कच्चे पके फल खाकर जीवन व्यतीत करते थे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1931ई0में एम0ए0(हिन्दी) की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात डी लिट के लिए स्वीकृत विषय, सूफी साहित्य 'पर विशेष अध्ययन किया और इस पर लगभग कार्य भी पूरा किया जा चुका था किन्तु उस समय की व्यवस्था के अनुरूप उनसे शोध प्रबंध अंग्रेजी में प्रस्तुत करने को कहा गया, जिसे उन्होंने राष्ट्रभाषा का अपमान बताते हुए ठुकरा दिया। वह आचार्य पं0रामचन...

कहानी आचार्य केशव चंद्र सेन की

  https://youtu.be/paf65WW_-ZY राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रह्म सभा गठन किया जो आगे चलकर के 1830 में ब्रह्म समाज में परिवर्तित हो गया।अ द्वितीय ने1830 में अपनी पेंशन की समस्या के समाधान करने के लिए राजा राम मोहन राय को 'राजा' की उपाधि देकर के विलियम चतुर्थ के दरबार में इंग्लैंड भेजा। सत्येंद्र नाथ मजूमदार के अनुसार वे प्रथम हिंदू थे जो बिलायत गए। इंग्लैंड में ही 27 सितंबर 1833 को राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई और ब्रिस्टल इंग्लैंड में उनकी समाधि है । उनकी मृत्यु के पश्चात  ब्रम्ह समाज के सह संस्थापक रहे उद्योगपति द्वारिका नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज का कार्यभार संभाला यह रविंद्र नाथ टैगोर के दादाजी थे । 1846 तक ब्रह्म समाज से जुड़े रहे।  द्वारिका नाथ टैगोर के बेटे देवेंद्र नाथ टैगोर 1839 में तत्वबोधिनी सभा की स्थापना करके समाज सुधार का कार्य कर रहे थे । देवेंद्र नाथ टैगोर, गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के पिता थे 1843 में ब्रह्म समाज की बागडोर देवेंद्र नाथ टैगोर के हाथों में आ गई और उन्होंने ब्रह्म समाज का पुनर्गठन किया विधवा पुनर्विवाह, बहुविवाह उन्मूलन,  नारी शिक्षा ...