सूदखोर
’अगर इस बार सूद का पैसा नही दी तो तुम्हारी बेटियों को उठा ले जाऊंगा’ इस धमकी को सुनकर करीमन का कलेजा दहल उठा था। किसी तरह इज्जत ढांपे दिन काट रही करीमन की आज सरेआम बेइज्जती हुई थी। अपने मरद के इलाज के लिए करीमन ने सूद पर उधार क्या लिया इज्जत पर उसके बन आई थी। मूल से ज्यादा चुकाने के बावजूद अभी देनदारी ज्यों की त्यों थी। आज सूदखोर के करींदे उसके घर पर चढ़ आये और धमकी भी इस कदर दिये कि इज्जत तार-तार हो गई। मुहल्ले का कोई भी उनका मुंह नही रोक पाया। मां, बहन की गालियां दिया सो अलग। सात भाईयों का कुनबा था उस सूदखोर का सब एक से बढ़कर एक खुंखार थे, कोई उनसे टकराने की जुर्रत नही करता था। सूद पर पैसे बाटना उनका धंधा था। तीन प्रतिशत से लेकर दस प्रतिशत मासिक के दर से वो सूद बांटते और सूद के पैसे वसूलते थे। सरकारी बैंक जहां वार्षिक बारह से पंद्रह प्रतिशत की दर से सूद वसूलते हैं वहीं ये सूद का अवैध धंधा करने वालों का एक सौ बीस प्रतिशत वार्षिक होता था। करीमन का आदमी मुमताज जब सही था तो करघे पर काम करता था, वो साड़ी उतारता था कि पूछो मत। कई बार तो उसने करीमन को अपने हाथ से बुनी हुई साड़ी पहनाई थी भ...