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लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है बाबा गोविंद साहब

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खिचड़ी व लाल गन्ना चढ़ाने से होती है हर मुराद पूरी  अम्बेडकर नगर और आजमगढ़ जिले की सीमा पर स्थित अहिरौली ग्रामसभा मे सिद्ध संत महात्मा गोविन्द साहब की समाधि लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। खास बात तो यह है कि यहां प्रसाद के रूप में मिष्ठान नहीं बल्कि समाधि पर चादर, कच्ची खिचड़ी और लाल गन्ना चढ़ाया जाता है। मेले की तैयारियां जोरों से चल रही है। पांच दिसंबर को गोविंद दशमी पर लगने वाले मेले में लाखों श्रद्धालु पवित्र सरोवर में डुबकी लगायेंगे। यहां हर साल एक माह का मेला लगता है और मान्यता है कि बाबा को गोविंद दशमी के दिन खिचड़ी चढ़ाने से हर मुराद पूरी हो जाती है। यहीं वजह है कि इस दिन यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचते है। पवित्र गोविंद सरोवर व बाबा गोविंद साहब का समाधि स्थल पर बना भव्य मंदिर गोविन्द साहब के मेले का तीन भाग अम्बेडकर नगर के आलापुर तहसील में पड़ता है जबकि एक हिस्सा आजमगढ़ के अतरौलिया थानान्तर्गत ग्राम लोहरा व अमाड़ी ग्रामसभा में आता है। सन् 1709 में अवतरित हुए गुलाल पंथ के प्रवर्तक गुलाल साहब के शिष्य भीखा साहब के तमाम शिष्यों में प्र...

सूदखोर

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’अगर इस बार सूद का पैसा नही दी तो तुम्हारी बेटियों को उठा ले जाऊंगा’ इस धमकी को सुनकर करीमन का कलेजा दहल उठा था। किसी तरह इज्जत ढांपे दिन काट रही करीमन की आज सरेआम बेइज्जती हुई थी। अपने मरद के इलाज के लिए करीमन ने सूद पर उधार क्या लिया इज्जत पर उसके बन आई थी। मूल से ज्यादा चुकाने के बावजूद अभी देनदारी ज्यों की त्यों थी। आज सूदखोर के करींदे उसके घर पर चढ़ आये और धमकी भी इस कदर दिये कि इज्जत तार-तार हो गई। मुहल्ले का कोई भी उनका मुंह नही रोक पाया। मां, बहन की गालियां दिया सो अलग। सात भाईयों का कुनबा था उस सूदखोर का सब एक से बढ़कर एक खुंखार थे, कोई उनसे टकराने की जुर्रत नही करता था। सूद पर पैसे बाटना उनका धंधा था। तीन प्रतिशत से लेकर दस प्रतिशत मासिक के दर से वो सूद बांटते और सूद के पैसे वसूलते थे। सरकारी बैंक जहां वार्षिक बारह से पंद्रह प्रतिशत की दर से सूद वसूलते हैं वहीं ये सूद का अवैध धंधा करने वालों का एक सौ बीस प्रतिशत वार्षिक होता था। करीमन का आदमी मुमताज जब सही था तो करघे पर काम करता था, वो साड़ी उतारता था कि पूछो मत। कई बार तो उसने करीमन को अपने हाथ से बुनी हुई साड़ी पहनाई थी भ...

काशी

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  तीन लोक से न्यारी काशी को कौन नही जानता ? परंतु मैं जिस काशी की बात कर रहा हूं वो भगवान शंकर के किसी भूत से कम नही थे। मुझे जो याद आ रहा है कि काशी गौरी नारायणपुर के ऐसे प्रसिद्ध व्यक्ति थे जिन्हे ढूढों तो वो कहीं न कहीं मिल ही जाते थे। एक झोली, एक बांस की कईन, धोती कुर्ता उपर से वर्षों की धोई हुई सदरी, कभी मौज में होते तो पगड़ी भी बांध लेते थे। इलाके के कुत्ते काशी से खौप खाते थे। क्या पता काशी जी किस कुत्ते की पूंछ पकड़ चार चक्कर घुमाकर पटक दें या किसी पिल्ले का कान ही जोर से उमेंठ दे कूं कूं करता वो अपनी जान की दुहाई मांगता भाग निकले। किसी भी मुसीबत या समस्या जो किसी सामान्य आदमी से हल नही होती उसका निदान काशी के पास होता था। एक बार गौरी नारायणपुर के एक पंडित जी के यहां अजीब सी मुसीबत आ गई। पंडिताईन लोटे में दूध रखकर रसोई का दरवाजा बंद कर दी और अपना काम करने में व्यस्त हो गई। इसी बीच न जाने कहां से  एक बिल्ली रसोई में घुस गई और दूध की लालच में अपना सिर लोटे में डाल दी। दूध तो बिल्ली पी गई लेकिन उसकी गर्दन लोटे में फस गई। गर्दन फंसते ही बिल्ली व्याकुल हो गई। लगी उछलने ...

हिन्दू मुस्लिम के आस्था के केंद्र है बाबा लद्धा शाह

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लद्धा शाह की मजार के सामने स्थित मनमन दाई , बाबा के मुतवल्ली बुल्ला शाह की मजार मनमन दाई के मजार पर चिराग जलाने के साथ हुआ उर्स का आगाज  लगभग छह सौ सालों से जायरीनों के आस्था के केंद्र लद्धा शाह की मजार पर लगने वाला उर्स मनमन दाई के मजार पर चिराग जलाने से प्रारंभ हुआ। हजारों जायरीनों ने बाबा के मजार पर चादर चढ़ाई व मन्नतें मांगी। जीयनपुर स्थित हिंदू और मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा लद्धा शाह की मजार पर प्रति वर्ष मोहर्ररम की 21 वीं तारीख को एक विशाल उर्स लगता है। ऐसी मान्यता है कि लगभग छह सौं सालों से यह उर्स लगता चला आ रहा है। लद्धा शाह पर उर्स लगने के बाद ही मकदूम साहब के यहां उर्स लगता है। लद्धा शाह के करिश्में के  लोग आज भी मूरीद हैं। कहा जाता है बाबा फकीरी मस्ती में रहते थे लोग समझ नही पाते थे कि वो एक वली हैं। तत्कालीन गुटबंदी की वजह से उनके विरोधियों ने यह फैसला किया कि उन्हे जीयनपुर में रहने नही देंगें। बाबा ने कहा कि वो रहेंगें तो जीयनपुर में ही। साजीशन बाबा को गांव के बाहर जगह दे दी गई बाबा वहीं रहने लगें कहा जाता है कि जब सर्वे हुआ तो बाबा के रहने की जगह ज...

’प्लास्टिक को हटाना है पर्यावरण को बचाना है’

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नगर स्वक्षता  रैली में शामिल  चेयरमैन हरिशंकर यादव उपजिलाधिकारी रावेन्द्र सिंह व् अन्य  सगड़ी (आजमगढ़)। नगर पंचायत जीयनपुर में शनिवार को प्लास्टिक को हटाने व स्वच्छता अभियान को गति देने के उद्देश्य से उपजिलाधिकारी सगड़ी रावेंद्र सिंह के नेतृत्व मे एक रैली निकाली गई जिसमे नगर पंचायत अध्यक्ष हरिशंकर यादव सहित क्षेत्र के सभ्रांत जन शामिल हुये । रैली में शामिल लोगों ने नगर को स्वच्छ बनाये रखने की अपील की तथा प्लास्टिक के प्रयोग को पूरी तरह से रोकने के प्रति प्रतिबद्धता जताई। नगर पंचायत कार्यालय जीयनपुर पर शनिवार की सुबह 8 बजे विविध स्कूलों के बच्चे अध्यापक, नगर पंचायत कर्मचारी व क्षेत्र के जागरूक लोग एकत्र हुये। उपजिलाधिकारी सगड़ी रावेंद्र सिंह ने बताया कि स्वच्छता अभियान को सबको अपनाने की जरूरत है। उन्होने कहा कि प्लास्टिक पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन है इसका बहिष्कार जन जागरूकता से ही होगा। उन्होने नगर पंचायत अध्यक्ष हरिशंकर यादव को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए बधाई भी दिया। उल्लेखनीय है कि नगर पंचायत अध्यक्ष हरिशंकर यादव के कार्यकाल के प्रारंभ होने के साथ ही नगर की ...

वरासत

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                  शेखपुर यही उस गांव का नाम था। नाम के अनुसार शेख तो थे नही लेकिन गांव में हर कोई हसी खुशी रहता था। गांव के कुछ लोग बाहर भी जाकर कमाई करते थे और कुछ गांव में रहकर खेती बारी। इसी गांव में रामजियावन का भी परिवार रहता था। रामजियावन को समय से पहले ही यमराज ने याद कर लिया, घर में रह गयी उनकी बेवा बुधिया। बुधिया और रामजियावन के दो बेटे हुए, गरीबी में ही सही बुधिया ने अपने  दोनो बेटे प्रेम और उमेश को बड़े जतन से पाला। प्रेम बड़ा था, और उमेश छोटा। दोनो भाईयों में बहुत प्रेम था शायद यह उस गरीबी का प्रभाव था जो बुधिया और उसके दोनो बेटों ने झेेला था। घर का बड़ा होने के कारण प्रेम के उपर जिम्मेदारियों का बोझ अधिक था। गांव की कमाई से खर्च नही चला तो प्रेम ने परदेश की राह पकड़ी। घर में माता की देखभाल के लिए उमेश था। दिन बीतते चले गये प्रेम की भी शादी हो गयी और कुछ दिनों के बाद उमेश की भी। प्रेम परदेश गया तो जरूर लेकिन गांव से नाता बनाये रखा। छोटके उमेश का वह बराबर ध्यान रखा, प्रेम की मेहरारू मेवाती ने भी सास और अपनी देवरान फूलमती को ...

जमानत

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                वकील साहब! इसका भी कुछ भला करिये, एक सिपाही कृशकाय हो चले अधेड़ की ओर ईशारा करते हुए कहा। वकील राधेमोहन मिश्रा जो अपने दो मुवक्किलों के जमानत के कागजात तैयार कर रहे थे, अपने नाक पर उतर आये चश्मे को ठीक करते हुए सिर उठाये तो देखे कि एक व्यक्ति जो 65 की उम्र में 85 का नजर आ रहा था आशा और निराशा के मिश्रित भाव लिये वकील साहब को निहार रहा था। वकील साहब ने कहा कि अरे दीवान जी ! कुछ है भी इसके पास। दीवान जी ने कहा कि पुलिस गई तो यह अपने पड़ोसियों को गाली दे रहा था, शांति भंग की आशंका में पुलिस इसके पड़ोसियों के साथ-साथ इसको भी ले आयी, ताकी कार्रवाई दोनों पक्ष पर हो।  151 की कार्रवाई है वकील साहब देख लीजिये । वकील साहब ने पूछा है कोई है तुम्हारे साथ ? अधेड़ ने जवाब दिया नाही साहब अकेले हईं, न मेहरारू, न लइका। खाना पानी कैसे होता है ? अगला सवाल, अधेड़ ने जवाब दिया एक ठे फूस क झोपड़ी हव साहब , एक ठे भदेली और कुछ बरतन हव कहीं से कुछ मिल जाला त बना लेईला नाही तो मांग जोंग के खा लेईला, मिलल तो ठीक नाहीं सरजू मईया का पानी साहब बड़ा मीठ ल...

आतंक के गढ़ की तस्वीरें और भी हैं

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पूर्वांचल का सबसे बड़ा जिला आजमगढ़ जिसे आतंक का गढ़ भी कह देते हैं वैसे यह नाम अब जनपद के लिए नया नही रह गया है। इस नाम के साथ जीने और इस नाम के बाप दादाओं से लड़ने की आदत जो इसकी हो गयी है। आजमगढ़ के साथ यह नाम आखिर जुड़ कैसे गया ? इस जनपद की आबो हवा साहित्यिक से  आपराधिक कैसे हो गयी ? आखिर क्यों अब राहुल सांकृत्यायन, कैफी आजमी के नाम की जगह अब अबु सलेम और आतंक के रास्ते पर चलने वाले कुछ भटके नौजवानों के नाम से आजमगढ़ को जाना जाता है ? इन बातों पर विचार करें मन को बहुत तकलीफ होती है, बस यही समझ में आता है कि बुराई से अधिक बुराई की चर्चा की गति तेज होती है जनपद प्राचीन वैदिक काल से ही अपने अस्तित्व को बनाये रखा है। तमसा, सरयू और बेसो नदी की धारा ने बौद्ध धर्म को खूब पोसा। कौशल और काशी दोनो राज्यों के अंग रहे इस जनपद का जिक्र आइने अकबरी में मिलता है। देवल, दुर्वासा और दत्तात्रेय की इस धरती पर कभी अध्यात्म की त्रिवेणी बहती थी। कहा जाता है कि जौनपुर राज्य के अंतर्गत आने वाले खटवा गांव के गौतम वंशीय रियासतदार चंद्रसेन सिंह गौतम के दो पुत्र थे सागर सिंह और अभिमान सिंह। इन दोनो भाईयों म...