हे! तमसे तेरा उद्धार न हो
.. नागरिक अपने घर से आज यूं ही टहलते हुए निकला तो कानों में रामचरित मानस की संगीतमयी ध्वनि मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी सुनकर प्रसन्न हो गया। इस चैपाई को मन ही मन दोहराते -दोहराते नागरिक की विचार श्रृंखला रामचरित मानस, गोस्वामी तुलसीदास, रामायण के रचयिता आदि कवि वाल्मीकि से होते हुए पवि़त्र नदी तमसा तक पहुंच गयी क्योंकि यही वह नदी थी जिसके तट पर विहार कर रहे क्रौंच पक्षी के जोड़े में से बहेलिये द्वारा एक की हत्या पर आर्द्र होकर वाल्मीकि के मुख से संस्कृत का पहला श्लोक फूट पड़ा था। नागरिक मन ही मन मगन हुआ कि उसे इसी पवित्र तमसा के तट पर रहने का सौभाग्य प्राप्त है, उसने सोचा चलो आज उसी पवित्र तमसा के दर्शन क्यों न किया जाय। टहलते कदमों से बढ़ चला नागरिक तमसा की ओर मन ही मन तमसा के रूप, लावण्य और प्रवाह को सोचते जैसे ही नागरिक तमसा के तट पर पहंुचा तो हर युग में अपने पवित्र जल से जन-जन को तारने वाली पवित्र तमसा का हाल देखकर भौचक रह गया। मल, मूत्र से बजबजाती तमसा को देख नागरिक को उबकाई आ गयी। वह सोच-सोच कर परेशान हो गया कि क्या यह वही देवी स्वरूपा तमसा है जिसके किनारे...