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बलात्कारियों को फांसी पर लटकाने का कानून आखिर कब?

कानपुर में एक पांच वर्षीय बच्ची के  साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले ने मन को झकझोर कर रख दिया है। एक हफ्ते पूर्व रेल बाजार थाना क्षेत्र से अगवा मासूम बच्ची की गैंगरेप के बाद ईंट से सिर कूंचकर हत्या कर दी गई और शव इलाहाबाद फाटक के पास खंडहर में फेंक दिया। पहले दिन रेप के बाद आरोपियों ने सिर कूंचा बच्ची बेहोश हो गई दूसरे दिन जब ये जानवर अपने अड्डे पर दुबारा पहुंचे तो दर्द से तड़पती बच्ची को जिंदा देख उसे फिर से कूंच डाले और इत्मीनान होने पर कि बच्ची की मौत हो गई है खुद ही उसके माता पिता को सूचना देने पहुंच गये। सवाल  यह है कि आखिर इतनी नृसंसता लोगों मे आ कैसे जाती है? क्या यह सिलसिला कभी  रुकेगाभी  या यूं ही मासूम बेटियां अपनी इज्जत और जान दोनो गंवाती रहेंगी। दिल्ली में निर्भया   के साथ बलात्कार के बाद बलात्कारियों को फांसी देने की मांग जोर शोर से उठी थी लेकिन उसके बाद केवल खामोशियां ही हैं। कानपुर के  फेथफुलगंज इलाके की सानिया एक गरीब तबके से है शायद उसके लिए कोई आंदोलन न हो लेकिन मानवता को शर्मसार करती यह घटना सवाल तो खड़ा ही कर रही है कि बलात्कारि...

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते  हर तरफ आदमी का शिकार आदमी रोज जीता हुआ रोज मरता हुआ  हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र  आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी निदा फ़ाज़ली 

मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ

मैं लोगों से मुलाकातों के लम्हे याद रखता हूँ  मैं बातें भूल भी जाऊं तो लहजे याद रखता हूँ  सर-ए-महफ़िल निगाहें मुझ पे जिन लोगों की पड़ती हैं  निगाहों के हवाले से वो चेहरे याद रखता हूँ  ज़रा सा हट के चलता हूँ ज़माने की रवायत से  कि जिन पे बोझ मैं डालू वो कंधे याद रखता हूँ  दोस्ती जिस से कि उसे निभाऊंगा जी जान से  मैं दोस्ती के हवाले से रिश्ते याद रखता हूँ  मुनव्वर राना 

बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ

बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे आधी सोई आधी जागी, थकी दोपहरी जैसी माँ चिड़ियों के चहकार में गूंजे, राधा - मोहन  अली- अली  मुर्गी की आवाज़ से खुलती, घर की कुण्डी जैसी माँ बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन, थोड़ी थोड़ी सब में दिन भर इक रस्सी के ऊपर, चलती नटनी जैसी माँ बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें, जाने कहाँ गयी फटे पुराने इक एलबम, में चंचल लड़की जैसी माँ... निदा फ़ाज़ली 

मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है

 मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है तवायफ़ की तरह अपने ग़लत कामों के चेहरे पर हुकूमत मंदिरों-मस्जिद का पर्दा डाल देती है हुकूमत मुँह-भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है कहाँ की हिजरतें कैसा सफ़र कैसा जुदा होना किसी की चाह पैरों में दुपट्टा डाल देती है ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती-जुलती है कहीं भी शाख़े-गुल देखे तो झूला डाल देती है भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है हसद* की आग में जलती है सारी रात वह औरत मगर सौतन के आगे अपना जूठा डाल देती है munnavar rana

कब खत्म होगा शिक्षक भर्ती का सरकारी बैर?

आजमगढ़। उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था किस स्तर पर पहुंच चुकी है वह सबके सामने आ रहा है। उत्तर प्रदेश बोर्ड खाली होता जा रहा है। हिंदी पट्टी के  बच्चे बहुतायत की संख्या में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा की ओर पलायन कर रहे हैं। प्राथमिक विद्यालयों की हालत इस कदर बदतर है कि कई-कई विद्यालय आज  भी एकल  शिक्षकों परआधारित हैं। कई ऐसे भी  परिषदीय विद्यालय है जों अध्यापक विहीन हैं। क्या उत्तर प्रदेश में शिक्षक बनने योग्य पढ़े लिखे लोगों की कमी हो गई या फिर प्रदेश सरकार ने शिक्षक भर्ती  से बैर पाल रखा है। राजनीति ने किस तरह से प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का बंटाधार किया है किसी भी  बुद्धिजीवी से छुपा नही हैं। हम अगर बात करें 72825 प्राथमिक शिक्षकों की  भर्ती तो विवादों की एक लम्बी श्रृंखला सामने उभ र कर आती है। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अपने सरकार के अंत समय में भर्ती  निकाल कर अपनी मंशा साफ जाहिर कर दी थी कि वह इस  भर्तीका राजनीतिक लाभ  लेना चाहती हैं। अगर उनकी मंशा साफ होती तो वह  भर्ती...