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मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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प्रो0 लाल बहादुर वर्मा का जन्म 10 जनवरी 1938 को छपरा में हुआ था, आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गोरखपुर में हुई, आपने गोरखपुर विश्वविघालय से इतिहास में एम.ए. तथा ‘एंग्लो इण्यिन कम्यूनिटी इन इण्डिया’ विषय से डाक्टरेट किया उसके बाद आपने पेरिस से ‘‘इतिहास में पूर्वाग्रह’’ विषय पर शोध कर डाक्टरेट किया। आप उ. प्र. हिस्ट्री कांग्रेस और अखिल भारतीय स्तर पर हिस्ट्री कांग्रेस में अध्यक्ष है। लखनऊ विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट हैं, मगर वे अपने को साहित्य एवं संस्कृति का प्रचारक ही मानते हैं। इन दिनों ‘अपने को गंभीरता से क्यों नहीं लेते है’ नामक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है। आपने अध्यापन की शुरूआत सतीश चन्द्र कालेज बलिया से प्रारम्भ किया। उसके बाद गोरखपुर विश्वविघालय में और फिर इलाहाबाद विश्वविघालय में इतिहास के प्रोफेसर हुए। उस दौरान आपने इतिहास की अनेक पुस्तकें लिखी जिनमें से प्रमुख हैं, ‘अण्डरस्टैण्डिग हिस्ट्री, एग्लों इंडियंस, इतिहास-क्यों, क्या, कैसे?’ ‘भारत की जनकथा’ इत्यादि। आपने अनेक पुस्तकों का अन्य भाषा से हिन्दी में अनुवाद भी किया है। जिनमें ‘नेचर आफ हिस्ट्री’ (अंग्रेजी से), फासिज्म-थियरी एं...

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प्रो. लालबहादुर वर्मा हिन्दी में इतिहास-लेखन करने वाले अग्रणी इतिहासकारों में से एक हैं। वे चर्चित पत्रिका ‘इतिहास-बोध’ के सम्पादक भी हैं और लम्बे समय से देश के कम्युनिस्ट आन्दोलन से भी जुड़े रहे हैं। वे एक प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी भी रहे हैं। देशभर में हिन्दी माध्यम के यूरोपीय इतिहास के छात्र उनके द्वारा लिखित ‘यूरोप का इतिहास’ का अध्ययन करते हैं, हालाँकि मार्क्सवादी दृष्टिकोण से यूरोपीय इतिहास पर उनकी पुस्तकों के आलोचनात्मक विवेचन की आवश्यकता है। पिछले लम्बे समय से प्रो. वर्मा विश्व प्रसिद्ध क्रान्तिकारी साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद कर रहे हैं, ‘इतिहास-बोध’ का प्रकाशन कर रहे हैं और साथ ही विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में वैविध्यपूर्ण विषयों पर लिख रहे हैं। यह पूरी बौद्धिक सक्रियता गति के मामले में किसी युवा बौद्धिक को भी पीछे छोड़ सकती है; लेकिन, जहाँ तक गहराई का सवाल है, यह अब किसी भी युवा बौद्धिक से भी पीछे छूटती नज़र आ रही है। उनके अनुवाद आदि पर बात न करते हुए हम हाल ही में ‘नया ज्ञानोदय’ के प्रेम महाविशेषांक-2 में प्रकाशित उनके एक लेख पर चर्चा करेंगे। प्रो. वर्मा ने जो लेख लिखा ...

तौफीक का अचानक से जाना अखर गया

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तौफीक का अचानक से जाना अखर गया बहुत प्यारा था   बड़े ख्वाब थे उसके  दुबई जाना था शादी करनी थी मम्मी को खुश करना था  अप्पी के लिए काम करने थे घर के झगड़े  निपटाने थे। ………। मगर  हम सब के प्यारे तौफिक़ को नीद  आ  गई। ………………  कहा सुना  माफ़ करना दोस्त अभी तुम्हे नहीं जाना  चाहिए था  तुम्हारा। …… प्रदीप 
आज दिनांक 04 मई 2015 को लोक जनशक्ति पार्टी ,अति पिछड़ा प्रकोष्ट की बैठक पार्टी कार्यालय सिविल लाइन्स आजमगढ़ पर सम्पन्न हुआ

ऐ दिल इस कदर धड़क कि मेरी जां निकल जाये

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ऐ दिल इस कदर धड़क कि मेरी जां  निकल जाये  आह निकले कि उनकी जां  निकल जाये।  संदीप कुमार तिवारी